चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक-17
18 अगस्त से 20 अगस्त
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जीवन भर करता रहा, अपनी मुट्ठी गर्म ।
हुआ रिटायर आज जो, घायल होता मर्म ।
घायल होता मर्म, धर्म-संकट है भारी ।
खुजलाये कर-चर्म, कर्म की है बीमारी ।
रविकर करे उपाय, हाथ रख दे अंगारा ।
मुट्ठी होती गर्म, भागता रोग बिचारा ।।
अंग नंग अंगा दफ़न, कफन बिना फनकार ।
रंग ढंग बदले सकल, रहा लील अंगार ।
रहा लील अंगार, सार जीवन का पाया ।
होवे न उद्धार, आग जिसने भड़काया ।
रविकर भरसक खाय, लिए मुट्ठी अंगारा ।
राक्षस किन्तु जलाय, कोयला रखे दुबारा ।।
गारा अंगारा लिए, अंगुली जैसी ईंट |
छंदों की सौ मंजिलें, खिंची *ढीट पर ढीट |
खिंची *ढीट पर ढीट, कक्ष मनभावन लागें |
कार सेवकों धन्य, मिली सेवा बिन मांगे |
ओ बी ओ की शान, बहे साहित्यिक धारा |
रहे जोड़ता हृदय, प्रेम का पावन गारा ||
*लकीर
मुट्ठी गर माई सखे, मुट्ठा मामा कंस |
सिर पर भुट्टा भूंजता, मारे भगिनी वंश |
मारे भगिनी वंश, अंश माया का आया |
हाथ धरे अंगार, ज्योति ने जब भरमाया |
तू मारे क्या मोय, मरे रविकर अधमाई |
पैदा तेरा काल, देख मुट्ठी गरमाई ||
आगमजानी जानता, आग नीर का वैर |
ढेरों गम देकर दहे, जलते अपने गैर |
जलते अपने गैर, आग का पुतला बनकर |
आग बो रहा ढेर, तमाशा देखे डटकर |
रविकर असम जलाय, करे हरकत शैतानी |
फांके नित अंगार, रोकता आगमजानी |||
रिटायर लोगों पर अच्छा कटाक्ष, और फिर अंगारे को लेकर इतनी बढिया कुंडलियाँ । कंस माया से लेकर असम दंगों तक।
ReplyDeletebilkul kaha hai sach rog aise hi bhage.paisa hath me ho to apne bhagya jage..nice presentation.संघ भाजपा -मुस्लिम हितैषी :विचित्र किन्तु सत्य
ReplyDeleteजीवन भर करता रहा, अपनी मुट्ठी गर्म ।
ReplyDeleteहुआ रिटायर आज जो, घायल होता मर्म ।
घायल होता मर्म, धर्म-संकट है भारी ।
खुजलाये कर-चर्म, कर्म की है बीमारी ।
ReplyDeleteआगमजानी जानता, आग नीर का वैर |
ढेरों गम देकर दहे, जलते अपने गैर |
जलते अपने गैर, आग का पुतला बनकर |
आग बो रहा ढेर, तमाशा देखे डटकर |
रविकर असम जलाय, करे हरकत शैतानी |
फांके नित अंगार, रोकता आगमजानी |||आग खायेंगे ,अंगारे हगेंगे ,बढ़िया मार्मिक राजनीति विद्रूप का काव्य - रूप कृपया यहाँ भी पधारें -
गृधसी नाड़ी और टांगों का दर्द (Sciatica & Leg Pain)
गृधसी नाड़ी और टांगों का दर्द (Sciatica & Leg Pain)
सुष्मना ,पिंगला और इड़ा हमारे शरीर की तीन प्रधान नाड़ियाँ है लेकिन नसों का एक पूरा नेटवर्क है हमारी काया में इनमें से सबसे लम्बी नस को हम नाड़ी कहने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहें हैं .यही सबसे लम्बी और बड़ी (दीर्घतमा ) नस (नाड़ी )है :गृधसी या सियाटिका .हमारी कमर के निचले भाग में पांच छोटी छोटी नसों के संधि स्थल से इसका आगाज़ होता है और इसका अंजाम पैर के अगूंठों पर जाके होता है .यानी नितम्ब के,हिप्स के , जहां जोड़ हैं वहां से चलती है यह और वाया हमारे श्रोणी क्षेत्र (Pelvis),जांघ (जंघा ) के पिछले हिस्से ,से होते हुए घुटनों पिंडलियों से होती अगूंठों तक जाती है यह अकेली नस ,तंत्रिका या नाड़ी(माफ़ कीजिए इसे नाड़ी कहने की छूट आपसे ले चुका हूँ ).
ReplyDeleteअंग नंग अंगा दफ़न, कफन बिना फनकार ।
रंग ढंग बदले सकल, रहा लील अंगार ।बढ़िया प्रस्तुति अब परिवर्धित रूप में पूरा आलेख हिदी में भी पढ़िए शुक्रिया ..कृपया यहाँ भी पधारें -
शनिवार, 25 अगस्त 2012
आखिरकार सियाटिका से भी राहत मिल जाती है .घबराइये नहीं .
गृधसी नाड़ी और टांगों का दर्द (Sciatica & Leg Pain)एक सम्पूर्ण आलेख अब हिंदी में भी परिवर्धित रूप लिए .....http://veerubhai1947.blogspot.com/2012/08/blog-post_25.html
श्रीमान व्यावहारिकता ,एवं नैतिकता से ओत -प्रोत कुण्डलिया लिखने के लिए बहुत- बहुत साधुवाद ।
ReplyDeletebeautiful thoughtful poem
ReplyDeletelike the photo
बहुत सुदर लिखा है आपने। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
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