19 September, 2012

भगवान् राम की सहोदरा (बहन) : भगवती शांता परम-15


 सर्ग-4 
भाग-3
कौशल्या कन्या पाठशाला 

अंगराज के स्वास्थ्य को, ढीला-ढाला पाय |
चम्पारानी की ख़ुशी, सारी गई बिलाय ||

शिक्षा पूरी कर चुके, अपने राजकुमार |
अस्त्र-शस्त्र सब शास्त्र में, पाया ज्ञान अपार ||

नीति-रीति सब विधि कुशल, वय अट्ठारह साल |
राजा बोले सोम से, पद युवराज सँभाल ||

हामी भरते ही हुआ, जयकारा चहुँओर ।
निश्चित तिथि पर जमा हो, सबसे बड़ी बटोर ।

शांता आगे बढ़ करे, सारे मंगल कार्य |
बटुक परम करता मदद, सेवे वह आचार्य ||

तीन दिनों तक महल में, चहल पहल का दौर ।
हर्षित राजा रोमपद, हुवे सोम सिरमौर ।।

गुरुजन के सानिध्य में, हुआ बटुक को बोध |
दीदी से कहने लगा, दूर करें अवरोध ||

प्रारम्भिक शिक्षा हुई, थी शांता के संग |
समुचित शिक्षा के बिना, मानव रहे अपंग ||

सुनकर के अच्छा लगा,  देती आशिर्वाद  |
सृन्गेश्वर भेजूं  तुझे, चार दिनों के बाद ||

आया उसको ख्याल शुभ, रखी बाँध के गाँठ |
कन्याशाला से बढ़ें, अंगदेश  के ठाठ ||

सोम बने युवराज तो, आया श्रावण मास |
सूत्र बाँधती भ्रात को, बहनों का दिन ख़ास ||

आई श्रावण पूर्णिमा,  सूत्र बटुक को बाँध |
गई सोम को बाँधने, मन में निश्चित साँध ||

राज महल में यह प्रथम,  रक्षा बंधन पर्व |
सोम बने युवराज हैं, होय बहन को गर्व ||

चम्पारानी थी खड़ी, ले आँखों में प्यार |
शांता अपने भ्रातृ की, आरति रही उतार ||

रक्षाबंधन बाँध के, शांता बोली भाय |
मोती-माणिक राखिये, यह सब नहीं सुहाय ||

दीदी खातिर क्या करूँ, पूँछें जब युवराज |
कन्या-शाला दीजिये, सिद्ध कीजिये काज ||

बोले यह संभव नहीं, यह शिक्षा बेकार |
पढ़कर कन्या क्या करे, पाले-पोसे नार ||

कन्याएं बेकार में,  समय करेंगी व्यर्थ  ||
गृह कार्य सिखलाइये, शिक्षा का क्या अर्थ ||

माता ने झटपट किया, उनमे बीचबचाव  |
शिक्षित नारी से सधे, देश नगर घर गाँव ||

वेदों के विपरीत है, नारी शिक्षा बोल |
उद्दत होते सोम्पद, शालाएं मत खोल ||

बढ़िया घटिया पर बहस, बढ़िया जाए हार |
घटिया पहने हार को, छाती रहा उभार |
छाती रहा उभार, दूर की लाया कौड़ी  |
करे सटीक प्रहार, दलीले भौड़ी भौड़ी |
तर्कशास्त्र की जीत, हारता मूर्ख गड़रिया |
बढ़िया बढ़िया किन्तु, तर्क से हारे बढ़िया ||

 
बोली, मैंने भी पढ़ी, शांता कर प्रतिवाद |
वेद-भाष्य रिस्य सृंग का, कोई नहीं विवाद ||

गौशाला को हम चले,  बाकी काम अनेक |
श्रावण बीता जाय पर, मेघ दिखे नहिं एक ||

त्राहि-त्राहि परजा करे, आया अंग अकाल |
खेत धान के सूखते, ठाढ़े कई सवाल ||

भीषण गर्मी से थका, मन-चंचल तन-तेज |
भीग पसीने से रही, मानसून अब भेज |

मानसून अब भेज, धरा धारे जल-धारा |
जीव-जंतु अकुलान, सरस कर सहज सहारा |

पद के सुन्दर भाव, दिखाओ प्रभु जी नरमी |
यह तीखी सी धूप, थामिए भीषण गरमी ||


धीरे धीरे सावन आये। समय हमेशा अधिक लगाये ।
व्याकुल जीवन तपती धरती । नाजुक विटप लताएँ मरती ।।
कुदरत अब सिंगार करे है । मस्तक पर नव मुकुट धरे है ।
नव पल्लव संबल पाते हैं । लिपट चिपट कर चढ़ जाते हैं ।।
हरियाली सब का मन मोहे ।  रविकर दिनभर भटके-टोहे ।
मेघ गर्जना बिजली दमकी । कविवर क्यूँ आँखें न चमकी ??

गौशाला में आ रहा, बेबस गोधन खूब |
पानी जो बरसा नहीं, जाए जन मन ऊब ||

सूखे के आसार हैं, बही नहीं जलधार ।
हैं अषाढ़ सावन गए, कर भादौं उपकार ।।



मन का पंछी दूर तक, उड़ उड़ वापस आय ।
सावन भी भाये नहीं, मन दारुण तड़पाय ।
  मन दारुण तड़पाय, स्वाँस यादे ही लाती ।
सुन गोरी चितलाय, झूल सावन जो गाती ।
भीगे भीगे शब्द, करे हैं ठेलिमठेला ।
रहा अधर में झूल, भीगता नहीं अकेला ।।

दूर दूर से आ रहे, गंगाजी के तीर ||
देखों उनकी दुर्दशा, करत घाव गंभीर ||

छोड़े अपने बैल सब, गाय देत गौशाल |
जोहर पोखर सूखते, बाढ़ा बड़ा बवाल ||

गरज हमारी देख के,  गरज-गरज घन खूब ।
बिन बरसे वापस हुवे, धमा-चौकड़ी ऊब ।
धमा-चौकड़ी ऊब, खेत-खलिहान तपे हैं ।
तपते सड़क मकान, जीव भगवान् जपे है ।
त्राहिमाम हे राम, पसीना छूटे भारी ।
भीगे ना अरमान, भीगती देह हमारी ।। 

सब शिविरों में आ रहे, होता खाली कोष |
कन्या शाला के लिए, मत दे बहना दोष ||

इतने में दालिम दिखा, बोला जय युवराज |
मंत्री-परिषद् बैठती, कुछ आवश्यक काज ||

पढ़ चेहरे के भाव को, दालिम समझा बात ||
शांता बिटिया है दुखी, दुखी दीखती मात ||

दालिम से कहने लगी, परम बटुक की चाह |
पढने की इच्छा प्रबल, दीजे तनिक सलाह ||

जोड़-घटाना जानता, जाने वह इतिहास |
वह भी तो सेवक बने, मात-पिता जब दास ||

लगी कलेजे में यही,  उतरी गहरे जाय |
सोचें न उत्कर्ष की, शांता कस समझाय ||

दुखते दिल से पूछती, अच्छा कहिये तात |
राजमहल के चार कक्ष, इधर कहाँ इफरात ||

चम्पा-रानी भी कहें, हाँ दालिम हाँ बोल |
कन्या-शाला को सके, जिसमें बिटिया खोल ||

हाथ जोड़ करके कहे,  यहाँ नहीं अस्थान |
महल हमारा है बड़ा, मिला हमें जो दान ||

शांता उछली जोर से, हर्षित निकले चीख |
कन्या-शाला के लिए, मांगे शांता भीख ||

शर्मिंदा क्यूँ कर रहीं, हमको ख़ुशी अपार |
ठीक-ठाक करके रखूं, कल मैं कमरे चार ||

माता को लेकर मिली, गई पिता के कक्ष |
अपनी इच्छा को रखा, सुनी राजसी पक्ष ||

सैद्धांतिक सहमति मिली, सौ पण का अनुदान |
कौशल्या शाळा खुली, हो नारी उत्थान ||

दूर दूर के कारवाँ, उनके संग परिवार ||
रूपा शांता संग में,  करने गई प्रचार ||

रुढ़िवादियों ने वहाँ, पूरा किया विरोध |
कई प्रेम से मिल रहे, कई दिखाते क्रोध ||

घर में खाने को नहीं, भटक रहे हो तीर |
जाने कब दुर्भिक्ष में, छोड़े जान शरीर || 

नौ तक की कन्या यहाँ, छोडो मेरे पास |
भोज कराउंगी उन्हें,  पूरे ग्यारह मास ||

इंद्र-देवता जब करें, खुश हो के बरसात |
 तब कन्या ले जाइए, मान लीजिये बात ||

गृहस्वामी सब एक से, जोड़-गाँठ में दक्ष |
मिले आर्थिक लाभ तो, समझें सम्मुख पक्ष ||


धरम-भीरु होते कई, कई देखते स्वार्थ |

जर जमीन जोरू सकल,इच्छित मिलें पदार्थ ||


चतुर सयानी ये सखी, मीठा मीठा बोल |
तेरह कन्यायें जमा, देती शाला खोल ||

एक कक्ष में दरी थी, उस पर चादर डाल |
तेरह बिस्तर की जगह, पंद्रह की तैयार ||

कक्ष दूसरा बन गया, फिर भोजन भंडार |
कार्यालय तीजा बना, कक्षा बनता चार ||

जिम्मेदारी भोज की, कौला रही उठाय |
सौजा दादी बन गई, बच्चों की प्रिय धाय ||

शांता पहली शिक्षिका, रूपा का सहयोग |
तख्ती खड़िया बँट गई,जमा हुवे कुछ लोग ||

रानी माँ आकर करें, शाळा शुभ-आरम्भ |
आड़े पर आता रहा, कुछ पुरुषों का दम्भ ||

 
जिम्मेदारी का वहन, करती बहन सटीक |
मौके पर मिलती खड़ी, बेटी सबसे नीक |
बेटी सबसे नीक, पिता की गुड़िया रानी |
चले पकड़ के लीक, बेटियां बड़ी सयानी |
रविकर का आशीष, बेटियाँ बढ़ें हमारी |
मातु-पिता जा चेत, समझ निज जिम्मेदारी ||

 

नित्य कर्म करवा रहीं, सौजा रूपा साथ |
आई रमणी रमण की, लगा रही खुद हाथ ||

पहले दिन की प्रार्थना, सादर शारद केर |
एकदन्त की विनय से, कटते बाधा-फेर ||

 


उबटन से ऊबी नहीं, मन में नहीं उमंग ।
पहरे है परिधान नव, सजा अंग-प्रत्यंग ।
सजा अंग-प्रत्यंग , नहाना केश बनाना ।
काजल टीका तिलक, इत्र मेंहदी रचवाना ।
मिस्सी खाना पान, महावर में ही जूझी ।
करना निज उत्थान, बात अब तक ना बूझी ।।

स्वस्थ बदन ही सह सके, सांसारिक सब भार |

बुद्धी भी निर्मल रहे, बढ़े सकल परिवार ||

रूपा के व्यायाम से, बच्चे थक के चूर ||
शुद्ध दूध मिलता उन्हें, घुघनी भी भरपूर ||

पहली कक्षा में करें, बच्चे कुछ अभ्यास ||
गोला रोटी सा करे, रेखा जैसे बांस || 

रिश्ते रिसियाते रहे, हिरदय हाट बिकाय ।
परिचित बेगाने हुए, ख़ुशी हेतु भरमाय ।
ख़ुशी हेतु भरमाय, नहीं अंतर-मन देखा।
धर्म कर्म व्यवसाय, बदल ब्रह्मा का लेखा ।
  दीदी का उपदेश, सरल सा चलो समझते ।
दिल में रखे सहेज, कीमती पावन रिश्ते ।।
 

एक घरी अभ्यास कर, गिनती सीखे जांय ||
दस तक की गिनती गिनें, रूपा रही बताय ||

 

सृजन-शीलता दे जला, तन-मन के खलु व्याधि ।
बुरे बुराई दूर हों, आधि होय झट आधि ।।


सृंगी के अभिलेख से, सीखी थी इक बात |

पारेन्द्रिय अभ्यास से, हुई स्वयं निष्णात ||

दोपहर में छुट्टी हुई, पंगत सभी लगाय |
हाथ-पैर मुंह धोय के, दाल-भात सब खाय ||

एक एक केला मिला, करते सब विश्राम |
कार्यालय में आय के, करे शांता काम ||

खेलों की सूची दिया, रूपा को समझाय |
दो घंटे का खेल हो, संध्या इन्हें जगाय ||

गौशाला से दूध का, भरके पात्र  मंगाय |
संध्या में कर वंदना, रोटी खीर जिमाय ||

सौजा दादी से कही,  एक कहानी रोज |
बच्चों को बतलाइये, रखिये दिन में खोज || 


किलकारी में हैं छुपे, जीवन के सब रंग ।

सबसे अच्छा समय वो, जो बच्चों के संग ।
जो बच्चों के संग, खिलाएं पोता पोती ।
दीपक प्रति अनुराग, प्यार से ताकें ज्योती ।
दीदी दादी होय, दीखती दमकी दृष्टी ।
ईश्वर का आभार, गोद में खेले सृष्टी ।  
 

राज-महल में शांता, बैठी ध्यान लगाय |
पावन मन्त्रों को जपे, दूरानुभूति आय ||

 

तिनका मुँह में दाब के, मुँह में उनका नाम ।
सौ जोजन का सफ़र कर, पहुंचाती पैगाम ।
पहुंचाती पैगाम, प्रेम में पागल प्यासी ।
सावन की ये बूंद, बढाए प्यास उदासी ।
पंछी यह चैतन्य, किन्तु तन को न ताके ।
यह दारुण पर्जन्य, सताते जब तब आके ।।
 

सृंगी के मस्तिष्क की, मिलती इन्हें तरंग ||
वार्ता होने लग पड़ी, रोमांचित हर अंग ||

सादर कर परनाम फिर, पूछी सब कुशलात ||
अंगदेश के बोलती, अपने सब हालात |

मिलता जब आशीष तो, जाय नेह में डूब |
बटुक परम भेजूं वहाँ, पढना चाहे खूब ||

स्वीकार करते ऋषी, करती ये अनुरोध |
एक शिक्षिका भेजिए, देवे  कन्या-बोध ||

माता खट-खट कर रहीं, ये बातों में लीन |
टूटा जो संपर्क तो,तड़पी जैसे  मीन ||

 
इक अति छोटे शब्द पर, बड़े बड़े विद्वान ।
युगों युगों से कर रहे, टीका व व्याख्यान ।

टीका व व्याख्यान,  सृष्टि को देती जीवन ।

न्योछावर मन प्राण, सँवारे जिसका बचपन ।
हो जाता वो दूर,  सभी सिक्के हों खोटे ।
कितनी वो मजबूर, कलेजा टोटे टोटे ।।

दालिम को जाकर मिली, अगले दिन समझाय |

परम बटुक गुरुकुल चले, हर्षित पढने जाय ||

वय है चौदह वर्ष की, पढने में था तेज |
आगे शिक्षा के लिए, रही शांता भेज ||

 
प्रीति होय न भय बिना, दंड बिना ना नीति ।
शिक्षा मिले न गुरु बिना, सद्गुण बिना प्रतीति ।

 

इक हफ्ते में आ गई, माँ का लेकर रूप |
नई शिक्षिका करे सब, शाळा के अनुरूप ||


Shringi Rishi

Shringi Rishi performed 'Putrakameshti Yajya' for King Dashrath of Ayodhya, after that Lord Rama and his three brothers were born. There is an ashram of Shringi Rishi situated at Ayodhya on the banks of Sarayu river near Laxman Ghat.Legend has it that Shringi Rishi cursed King Parikshit for his sinful conduct against rishi Lomash. The boons and curse uttered by him were proved to be absolutely true. Rishi Shringi was a distinguished expert of the super science of mantras. A temple of Shringi Rishi, is also located at Banjar in Kullu, Himachal Pradesh, in whose honour a fair is held every year in May.Shringi Rishi is the ruling deity of Banjar valley. Here rishi is popularely known as Skirni Deo. Skirni Deo is thought to be the king of Kaliyuga. A wooden temple of Shringi Rishi is located at Skiran (12000 feets),where pindi of Shringi and Bhagvati Shanta is established. In 2008, this temple has been reconstructed after 60 years. Shringi rishi is one of the ancient deity of Kullu valley, also included among atthara kardoo (eighteen chief deities of Kullu). Here rishi used to trevel whole valley after certain interval of time. Some of the tours are trips to Rakti sar, Dhol Garh, Hamta, Malana, Panch Kothi doura and Lambti doora.Each trip is followed by one and another in the regular interval of 12–18 years.Each trip lasts for about one month or so, though Dhol Garh trip usually lasts for three and half months. Devatas (In Kullu, there are about more than 600 palanquins of gods called rath) from the whole valley used to come and meet Shringi rishi whenever there is sevre drought in the area. cave is also located in district Sirmaur near Nahan in Bagthan where he is supposed to have stayed. It is a long cave where he is supposed to do yagna and worth seeing.
Sikhwal (also known as Sukhwal, Shringi) are one of the prominent Brahmin sects of Rajasthani Brahmins who trace their origin from the great sage Rishi Shringi (or Rishi Shring). Rishi Shringi was the son of Sage Vibhandak, himself a highly respected Vedic scholar of Kashyaap linage. Rishi Shringi is credited in Indian mythology as the inventor of ‘Putrakameshti Yagna’, the Vedic sacrifice for begetting a male progeny. This first ever Putrakameshti Yagna was performed by Rishi Shringi for the Suryawanshi Emperor Dashrath of Ayodhya (of Ikshavaku lineage) and the outcome of this Yagna was the birth of Lord Rama, the great Indian God-king and revered ‘Avtaar’ (incarnation) of Lord Vishnu, the powerful god in the holy Hindu trinity of Brahma-Vishnu-Mahesh. Lord Rama was born with the blessings of the Gods who were appeased by Rishi Shringi with powerful mantras. Three more sons were born to Dashrath besides Rama (born to his eldest Queen, Devi Kaushlya) Laxman, Bharat and Shatrughna born to Devi Sumitra and Devi Kaikayee, the other two Queens of Emperor Dashrath.
The Yagna was an elaborate affair spreading over twelve days and was performed with much fanfare befitting its uniqueness. The legend has it that Emperor Dashrath’s only Sister, the beautiful young Princess Shanta, who was actively involved in the organizing of the Yagna, fell in love with the handsome and scholarly young sage Shringi. Her brother, Emperor Dashrath understood her feelings and on the occasion of ‘Poornaahuti’ (final sacrifice offered to gods, announcing the completion of Yagna process) proposed royal princess Shanta’s hand in marriage to Rishi Shringi. They were married and had eight sons and many daughters. All the sons born out of the alliance were highly respected for their knowledge of the holy Vedas and involved themselves in scholarly pursuits. Their descendants were later organized into the sub-sect of Brahmins, called Sikhwal Brahmins (also known as Sukhwal, Shringi Brahmins).
Cities of uttar Pradesh such as Jhansi, Lalitpur, Kanpur and many other subcities like Baruasagar,Babina,Dhaurra in jhansi have a presence of Shringirishi Brahmins. Cities of Madya Pradesh such as Bhopal, Jabalpur, Saugor, Jhansi, Khurai, Damoh and many villages of the state like Bina,Dhaura,Burogon,Khiria,Kalyanpura,Mohara,Baruasagar,Sihora,Ramnagar,Sinonia,Rampura etc. still have their designation.
Cities of Jaipur, Ajmer, Kota and Udaipur and many other places in Rajasthan, Kolkota in West Bengal, Hyderabad and Vijaywada in Andhra Pradesh, Mumbai, Nasik, Jalgaon, Akola, Amravati, Latur and other places in Maharashtra have a significant presence of Sikhwal Brahmin population. Today, the Sikhwals are spread all over India and also in USA and Europe.
Other prominent Rajasthani Brahmin sub-sects are Gaur, Gujar-Gaur, Daima (also called Dayama or Dadeech), Pareek, Khandelwal (not to be confused with the ‘Vaisha’ community of the same name) and Saraswat Brahmins.
In Rajasthan the other five castes i.e. Guar, Gujar-Gaur, Daima, Pareek and Khandelwal [not vaisha] together form Chh-Nyatee Bhai. Though they do not marry among themselves, but share a strong social bonding and invite each other on all auspicious occasions. In Pushkar near Ajmer in state of Rajasthan, India, Sikhwal Brahmins have an inn and a temple dedicated to Shringi Rishi.
Shringi Rishi Ashram
40 Km away from Faizabad after reaching Gosaiganj and 8 Km from Bandanpur there is a Market called Mehbubganj you reach to Sherwaghat.There is also an ashram of Shringi Rishi.
20 Km away from Jhansi after reaching Baruasagar there is a Shringirishi temple.
20 Km away from Bina MP after reaching village Sarkhadi there is Shringirishi Temple.
80 Km away from Jhansi in village Sangaouli there is new temple of Shringirishi.

विवरण मनभावन लगा, सावन दगा अबूझ |
नाटक नौटंकी ख़तम, ख़तम पुरानी सूझ |
ख़तम पुरानी सूझ, उलझ कर जिए जिंदगी |
अपने घर सब कैद, ख़तम अब दुआ बंदगी |
गुड़िया झूला ख़त्म, बची है राखी बहना |
मेंहदी भी बस रस्म, अभी तक गर्मी सहना ||

4 comments:

  1. प्रीति होय न भय बिना, दंड बिना ना नीति ।
    शिक्षा मिले न गुरु बिना, सद्गुण बिना प्रतीति ।
    निति की बात सुंदर काव्य के मध्यम से ,पुरुष से महिला के शिक्ष के लिए संघर्ष और उत्कर्ष का सुंदर चित्रण,उत्कृष्ट चित्रण के लिए साधुवाद

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  2. उत्‍कृष्‍ट लेखन ...आभार

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  3. वाह क्या विस्तार है .जानकारी अपार है .अद्भुत है .
    ram ram bhai
    बृहस्पतिवार, 20 सितम्बर 2012
    माँ के गर्भाशय का बेटियों में सफल प्रत्यारोपण

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