12 September, 2012

बने नहीं पर न्यूज, लाख मारे मँहगाई


बावन शिशु हरदिन मरें, बड़ा भयंकर रोग ।
खाईं में जो बस गिरी, उसमें बासठ लोग ।

उसमें बासठ लोग, नाव गंगा में डूबी ।
दंगे मार हजार, पुलिस नक्सल बाखूबी ।

गिरते कन्या भ्रूण, पड़े अब खूब दिखाई ।
बने नहीं पर न्यूज, लाख मारे मँहगाई ।।

4 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति है न्यूज़ भाई साहब पैसे देके लगवाई जाती है .
    ram ram bhai
    बुधवार, 12 सितम्बर 2012
    देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने .

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  2. महंगाई नही मारती बडे धनवानों को
    वह तो मारे कम-धन और किसानों को
    और मारती है वह मिडिल क्लास को भी
    नही मारती है वह पर नेताओं को ।

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  3. गिरते कन्या भ्रूण, पड़े अब खूब दिखाई ।
    बने नहीं पर न्यूज, लाख मारे मँहगाई ।।

    भूर्ण हत्या का पाप आज का आधुनिक मानव यंत्रवत करता जा रहा है ,ओ चाहे कामेच्छा की पूर्ति के लिए हो या फिर पुत्रेछा के लिए ,जीव हत्या तो आधुनिकता का पर्याय बबनती जा रही है ,नैतिकता के देकेदार भी इस सत्य से मुह चुराते हुए दिखाते है ,बहुत ही समाचीन प्रश्न सादगी के साथ ,धन्यवाद

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