13 September, 2012

बधु ना पावे आज, कुंवारा बैठा नप्ता -रविकर

नप्ता हो पैदा अगर, बजे नफीरी ढोल ।
नप्त्री से नफरत दिखे, खुले ढोल की पोल ।

खुले ढोल की पोल, रोल न सही निभाया ।
पैंया भारी होंय , पेट पापी गिरवाया ।

ना कांपा तब हाथ, आज  बुढऊ क्यूँ कप्ता ?
बधु ना पावे आज, कुंवारा बैठा नप्ता ।।

करते वे तफरीह, ढूँढती माँ को मोटर-

 मोटर में लिख घूमते, माँ का आशिर्वाद ।
जय माता दी बोलते, नित पावन अरदास ।
नित पावन अरदास, निकल माँ बाहर घर से ।
रोटी को मुहताज, कफ़न की खातिर तरसे ।
कह रविकर पगलाय, कहीं खाती माँ ठोकर ।
करते वे तफरीह, ढूँढती माँ को मोटर ।। 


आँख रही नित मींज, मोतिया-बिन्द पालती-

आज पालती पौत्र को, पहले पाली पूत ।
पौत्र गरम मूते तनिक, आग रहा सुत मूत ।
आग रहा सुत मूत, टिफिन तब डबल बनाया ।
सुबह शाम मम भूख, चाय से अब निपटाया ।
ख्वाहिस की सब पूर,  किन्तु अब बात सालती ।
आँख रही नित मींज, मोतिया-बिन्द पालती ।।

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