नप्ता हो पैदा अगर, बजे नफीरी ढोल ।
नप्त्री से नफरत दिखे, खुले ढोल की पोल ।
खुले ढोल की पोल, रोल न सही निभाया ।
पैंया भारी होंय , पेट पापी गिरवाया ।
ना कांपा तब हाथ, आज बुढऊ क्यूँ कप्ता ?
बधु ना पावे आज, कुंवारा बैठा नप्ता ।।
करते वे तफरीह, ढूँढती माँ को मोटर-
मोटर में लिख घूमते, माँ का आशिर्वाद ।
जय माता दी बोलते, नित पावन अरदास ।
नित पावन अरदास, निकल माँ बाहर घर से ।
रोटी को मुहताज, कफ़न की खातिर तरसे ।
कह रविकर पगलाय, कहीं खाती माँ ठोकर ।
करते वे तफरीह, ढूँढती माँ को मोटर ।।
आँख रही नित मींज, मोतिया-बिन्द पालती-
आज पालती पौत्र को, पहले पाली पूत ।
पौत्र गरम मूते तनिक, आग रहा सुत मूत ।
आग रहा सुत मूत, टिफिन तब डबल बनाया ।
सुबह शाम मम भूख, चाय से अब निपटाया ।
ख्वाहिस की सब पूर, किन्तु अब बात सालती ।
आँख रही नित मींज, मोतिया-बिन्द पालती ।।
व्यंग्य है ..
ReplyDeletewaah bahut khoob...
ReplyDeleteह्म्म........
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