मेरे सपनों के भारत में, मोटा मोटा कोटा होगा ।
बड़ा बड़प्पन रखे जेब में, चालू पुर्जा छोटा होगा ।
गली गली में गदहा लोटा, भांग भरा हर लोटा होगा ।
नकली दाना दवा दिवाना, असली नस्ली टोटा होगा ।
संसद में जब लंद-फंद हो, जम कर झोटी झोटा होगा ।
फुरसतिया के हाथों में तब, बोटी होगी बोटा होगा ।
चीटी चीनी चाट चुकी बस, बहता रहता *चोटा होगा ।
मिली-भगत है सत्ता की सब, दे दे ठेका पोटा होगा ।
*शीरा
करके दोहन खनिज-लवण का, माल-मसाला घोटा होगा ।
धरती पोली पोली होगी, केवल बचा लंगोटा होगा ।
परखनली शिशु चपल खरा सा, माँ का बच्चा खोटा होगा ।
इधर कुपोषण से मरियल उत, फास्ट फूड खा मोटा होगा ।।
इन्स्पेक्टर का राज रहेगा, सजा हाथ में सोटा होगा ।
सजा-कजा से रखे डराकर, मोटा घूस-घसोटा होगा ।
(दूसरी प्रस्तुति : उल्टा-पुल्टा )
सपनों का भारत दिखे, लिखे मुँगेरी लाल |
रुपिया बरसे खेत में, घर में मुर्गी दाल |
घर में मुर्गी दाल, चाल सब चलें पुरातन |
जर जमीन जंजाल, बजे हर घर में बरतन |
चचा भतीजावाद, राज भी हो अपनों का |
बझा रहे हर जंतु, यही भारत सपनों का ||
( पहली प्रस्तुति )
भीड़ घटे श्मशान में, हस्पताल में रोग ।
दारुण दुर्घटना घटे, सदा घटे संजोग ।
सदा घटे संजोग, भ्रूण हत्या ना होवे।
हो दहेज़ अब बंद, कहीं कुत्ता ना रोवे ।
देखे रविकर स्वप्न, ध्वस्त दुश्मन-मनसूबे ।
सूबे सब खुशहाल, नहीं जी डी पी डूबे ।।
बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार
क्या बात है ... तेज धार छुरी है आपकी कलम ...
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