सर्ग-4
भाग-8
आश्रम में शांता
दो दिन का करके सफ़र, पहुंची कोसी तीर |
आश्रम में स्वागत हुआ, मिटी पंथ की पीर ||
अगला दिन अति व्यस्त था, अति-प्रात: उठ जाय |
आज्ञा लेकर सास की, नित्य कर्म निबटाय ||
कोशी की पूजा करे, कुलदेवी के बाद |
सृन्गेश्वर को पूजती, मन में अति-अह्लाद ||
सास ससुर के चरण छू, बना रही पकवान |
आश्रम के सब जन बने, शांता के मेहमान ||
बड़ी रसोई में जले, चूल्हे पूरे सात |
दही बड़े जुरिया बनी, उरद-दाल सह भात ||
आलू-गोभी की पकी, सब्जी भी रसदार |
मेवे वाली खीर से, छाई वहाँ बहार ||
दस पंगत लम्बी लगी, कुल्हड़ पत्तल साज |
भोजन लगी परोसने, अन्नपूर्णा आज ||
परम बटुक संग में लगा, रिस्य सृंग पद भूल |
अतिथि हमारे देवता, सबको किया क़ुबूल ||
परम बटुक से खुश सभी, शारद सदा सहाय |
एक बार के पाठ से, गूढ़ विषय आ जाय ||
पढ़े चिकित्सा शास्त्र वो, विषय बहुत ही गूढ़ ||
परंपरा के ज्ञान पर, होकर के आरूढ़ ||
मन मानव कल्याण में, धन दौलत को भूल |
दीन-दुखी बीमार की, सेवा बने उसूल ||
नए शोध पर रख रहा, अपनी तीक्ष्ण निगाह |
कम कैसे हो सकेगी, अति-दर्दीली आह|
दीदी की ससुराल में, बनकर सच्चा भाय |
सेवा सुश्रुषा करे, गुरुकुल को महकाय ||
दूर-दूर से आ रहे, याचक-दाता द्वार |
रोगी भी करवा रहे, आश्रम में उपचार ||
कुछ प्रतिनिधि विनती करें, कृपा कीजिये नाथ |
घाटी की बिगड़ी दशा, नहीं सूझता पाथ ||
देव हिमाचल भूमि में, बिगढ़ रहे हालात |
वर्षा ऋतु आधी गई, हुई नहीं बरसात ||
खाने के लाले पड़े, नंगे होंय पहाड़ |
हिंसक जीवों की वहाँ, गूंजे लगी दहाड़ ||
देव मनुज गन्धर्व सब, ऋषिवर परजा तोर |
घाटी की विपदा हरो, जन जन रहा अगोर ||
ऋषी बिबंडक ने कहा, रखिये मन में धीर |
जल्दी ही मिट जाएगी, यह त्रिशुच की पीर ||
सृंगी से कहने लगे, हुआ पूर इक साल |
शांता को भिजवाइए, अब अपनी ससुराल ||
कार्य यहाँ के पूर्ण कर, करिए अब प्रस्थान |
बड़ी समस्या का करें, समुचित शीघ्र निदान ||
हाथ जोड़कर बोलते, सृंगी मन की बात |
सहमत ऋषिवर हो गए, बतिया बड़ी सुहात ||
जाय संभालो राज को, शांता को ले जाव |
पड़े रास्ते में अवध, भाई से मिलवाव ||
मात पिता के चरण छू, परम बटुक ले साथ |
रामचंद्र को भेंटते , देव भूमि के पाथ ||
चरण छुवे भ्राता सभी, पाते आशीर्वाद |
शांता को आते रहे, पूरे रस्ते याद ||
दशरथ, तीनों रानियाँ, आवभगत में लाग |
इन अभिनव मेहमान से, भाग अवध के जाग ||
सारी परजा आ गई, करती जय जयकार |
उपहारों का लग गया, बहुत बड़ा अम्बार ||
सृंगी शांता बोलते, हम सन्यासी लोग |
चीजें संचय न करें, करे नहीं अति भोग ||
कृपा करके दीजिये, अनुमति हे श्रीमान |
ढूंढ़ जरूरतमंद को, बांटो यह सामान ||
कौशल्या मानी नहीं, मेवा फल मिष्ठान |
दो दिन खातिर संग में, बाँधीं कुछ पकवान ||
पलकों पर बैठा रहे, देवभूमि के लोग |
भीगी आँखें बरसती, वर्षा का संयोग ||
राजकाज में जा फंसे, रिस्य सृंग महराज |
प्रमुख सभी आने लगे, प्रेम-पालकी साज ||
कर सबको आश्वस्त तब, रिस्य रिसर्चर राज |
कर्म गूढ़ करने लगे, सिरमौरी को साज ||
रिस्य गुफा में कर रहे, बैठ लोक-कल्यान |
बटुक परम चढ़ता रहा, शिक्षा के सोपान ||
उधर अंग में मच रहा, उथल-पुथल गंभीर |
रूपा को लग ही गए, कामदेव के तीर ||
अंगराज अब स्वस्थ हैं, महामंत्री संग |
मुश्किल हल करते रहे, प्रगति-पंथ पर अंग ||
शाला में बाला बढीं, नया भवन बनवाय |
आचार्या बारह नई, माली श्रमिक बुलाय ||
इंतजाम उत्तम किया, फैले यश चहुँ ओर |
पुंड्रा बंग विदेह जन, शाला रहे अगोर ||
परिवर्तन आया सुखद, आगे बढ़ता अंग |
नीति-नियम से चल रही, शाला नूतन ढंग ||
सोम सदा आता रहा, कन्या-शाला पास |
रूपा से करता रहे, बातें चुप-चुप ख़ास ||
राजमहल जाने लगी, रूपा भी दो बार |
गंगा तट पर विचरती, आई नई बहार ||
लम्बे-लम्बे इन्तजार से, खुब तड़पाते हो |
गोदी में सिर रखकर प्रियतम गीत सुनाते हो |
देर से आने की झूठी, सब - गाथा गाते हो,
पलकें पोल खोलती फिर भी बात बनाते हो |
शब्दों के तुम बड़े खिलाड़ी भाव जमाते हो
अवसर पाकर अंगुली पकड़ी "पहुंचा" पाते हो |
प्यासी धरती पर रिमझिम सावन बरसाते हो
मन-झुरमुट में हौले से प्रिय फूल खिलाते हो |
एक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,
अनमयस्क से इधर उधर कर समय बिताते हो |
रह-रह कर के विरह-अग्नि बरबस भड़काते हो,
रह-रह करके पल-पल तन-मन आग लगाते हो |
फिर आने का वादा करके वापस जाते हो,
वापस जाकर के फिर से, ना प्यार दिखाते हो ||
कैसा अंतर्द्वंद यह, कैसा यह संताप |
चाहूँ तुम्हे पुकारना, पर रहती चुपचाप |
पर रहती चुपचाप, अश्रु-धारा को धारा |
रही रास्ता नाप, पुकारी नहीं दुबारा |
प्रीति नहीं अपनाय, गुजारिश ठुकराते हो |
पोता भाई पुत्र, इन्हें ही अपनाते हो |
कैसा अंतर्द्वंद यह, कैसा यह संताप |
चाहूँ तुम्हे पुकारना, पर रहती चुपचाप |
पर रहती चुपचाप, अश्रु-धारा को धारा |
रही रास्ता नाप, पुकारी नहीं दुबारा |
प्रीति नहीं अपनाय, गुजारिश ठुकराते हो |
पोता भाई पुत्र, इन्हें ही अपनाते हो |
सोम फ़िदा उसपर हुए, मीठीं बातें बोल |
रूपा के तनबदन में, रहे प्रेम-रस घोल ||
रूपा को व्याकुल करे, शांता केर विछोह |
भटके मन हो बावली, होय सोम से मोह ||
तरुण सोम चंचलमना, चल शाळा की ओर |
मानो कोई खींचता, कठपुतली की डोर ||
शांता नित करती रही, कन्या-शाळा याद |
प्राकृति पहुंचाई वहाँ, रूपा का उन्माद ||
अनमयस्क सी शांता, रहने लगी उदास |
कार्य सिद्ध करके ऋषी, लौटे शांता पास ||
बारिस की बूंदें गिरीं, बीत रहा इक माह |
मैके जाना चाहिए, शांता करे सलाह ||
फेरे की इक रस्म है, करिए उसको पूर |
नदी मार्ग से जाइए, अंगदेश अति दूर ||
हुई पालकी में विदा, ऊँचीं नीची राह |
धीरे-धीरे छूटते, गिरी कन्दरा गाह ||
तेज धार धीमी हुई, आया सम मैदान |
नाविक गण फिर थामते, यात्रा केर कमान ||
हुई पालकी में विदा, ऊँचीं नीची राह |
धीरे-धीरे छूटते, गिरी कन्दरा गाह ||
तेज धार धीमी हुई, आया सम मैदान |
नाविक गण फिर थामते, यात्रा केर कमान ||
निश्चित तिथि पर चल पड़ी, परम बटुक के साथ |
नाव सजा के बैठती, गंगा जल ले माथ ||
मंगल भावों का उदय, छाये परमानंद |
शुभ शुभ योगायोग है, विरह अग्नि हो मंद |
विरह अग्नि हो मंद, चंद दिन ही तो बाकी |
महके मधु मकरंद, मस्त महिमा अम्बा की |
मैया का आशीष, ख़त्म हो मन के दंगल |
मिटे विरह की टीस, होय सब मंगल मंगल ||
मंगल भावों का उदय, छाये परमानंद |
शुभ शुभ योगायोग है, विरह अग्नि हो मंद |
विरह अग्नि हो मंद, चंद दिन ही तो बाकी |
महके मधु मकरंद, मस्त महिमा अम्बा की |
मैया का आशीष, ख़त्म हो मन के दंगल |
मिटे विरह की टीस, होय सब मंगल मंगल ||
ram ram bhai
ReplyDeleteमुखपृष्ठ
सोमवार, 1 अक्तूबर 2012
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
http://veerubhai1947.blogspot.com/
ReplyDeleteपढ़े चिकित्सा शास्त्र वो, विषय बहुत ही गूढ़ ||
परंपरा के ज्ञान पर, होकर के आरूढ़ ||
बहुत सुन्दर रचना है भाई साहब .
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ReplyDeleteमुखपृष्ठ
मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
विदुषियो ! यह भारत देश न तो नेहरु के साथ शुरु होता है और न खत्म .जो देश के इतिहास को नहीं जानते वह हलकी चापलूसी करते हैं .
रही बात सोनिया जी की ये वही सोनियाजी हैं जो बांग्ला देश युद्ध के दौरान राजीव जी को लेकर इटली भाग गईं थीं एयरफोर्स की नौकरी छुड़वा कर .
भारतीय राजकोष से ये बेहिसाब पैसा खर्च करतीं हैं अपनी बीमार माँ को देखने और उनका इलाज़ करवाने पर .
और वह मंद बुद्धि बालक जब जोश में आता है दोनों बाजुएँ ऊपर चढ़ा लेता है गली मोहल्ले के गुंडों की तरह .
उत्तर प्रदेश के चुनाव संपन्न होने के बाद कोंग्रेस की करारी हार के बाद भी इस बालक ने बाजुएँ चढ़ाकर बोलना ज़ारी रखा -मैं आइन्दा भी उत्तर प्रदेश के खेत खलिहानों में
आऊँगा .इस कुशला बुद्धि बालक के गुरु श्री दिग्विजय सिंह जी को बताना चाहिए था -बबुआ चुनाव खत्म हो गए अब इसकी कोई ज़रुरत नहीं है .
इस पोस्ट में जो भाषा इस्तेमाल की गई है उसका भारतीय भाषा से कोई तालमेल नहीं है .यह चरण- चाटू भाषा है जो कहती है लाओ अपने चरण जीभ से चाटूंगी .सीधी- सीधी
चापलूसी है इस भाषा में कोई भी दो पंक्ति ले लीजिए पहली पंक्ति सामान्य रूप से कही जाती है ,दूसरी में ज़बर्ज़स्ती कीलें ठोक दी जातीं हैं किले खड़े कर दिए जातें हैं ..हरेक
पंक्ति के बीच यात्रा राहुल सोनिया के बीच की जाती है .एक छोर पर राहुल दूसरे पर सोनिया .
जिन्हें इतिहास का पता नहीं बलिदान का पता नहीं जिन्हें ये नहीं पता इस मुल्क के महाराष्ट्र जैसे राज्यों के तो कुल के कुल बलिदान हो गए,अनेक पीढियां हैं बलिदानी
.सावरकर को उम्र भर की सजाएं मिलीं .पंजाब में गुरुओं ने क्या जुल्म न सहे .क्या क्या कुर्बानी देश के लिए न दीं.
औरतें तो इस देश में खुद्द्दार हुआ करतीं थीं .चाटुकारिता कबसे करने लगीं? पुरुष बाहर रहता था उसे बेचारे को कई तरह के समझौते करने पड़ते थे .महिलाएं चारणगीरी नहीं
करतीं थीं .
और फिर चाटुकारिता के भी आलंबन होते थे .जिसकी चाटुकारिता की जाती थी उसमें कुछ गुण होते थे .जो योद्धा होते थे उनकी वीरता का यशोगान कर उनमें जोश भरा जाता
था .चाटुकारिता निश्चय ही राजपरिवारों के प्रति रही आई है .लेकिन इस पाए की नहीं .
लेकिन जिसे भारत की संस्कृति भाषा भूगोल आदि का ज़रा भी ज्ञान नहीं जिसका कोई कद और मयार नहीं वह आलंबन किस काम का .
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
गीता में अनासक्त भाव की भक्ति का योग है .लेकिन जिस भक्ति भाव और तल्लीनता से यह चाटुकारिता की गई है वह श्लाघनीय है
भले यह स्तुति इनका वैयक्तिक
मामला हो .
सन्दर्भ -सामिग्री :-
Monday, October 1, 2012
इसलिए राहुल सोनिया पर ये प्रहार किये जाते हैं .
इसलिए राहुल सोनिया पर ये प्रहार किये जाते हैं .
भाई साहब गलती से निम्न पोस्ट पर आपकी टिपण्णी जिसमें आपने इस पोस्ट को चर्चा मंच बुद्धवार शामिल किए जाने की इत्तल्ला दी है हमसे गलती से हट गई है .कृपया दोबारा टिपण्णी करें ,आमंत्रित करें आपकी टिपण्णी का हमारे लिए अलग महत्व होता है .आभार .
ReplyDeleteram ram bhai
मुखपृष्ठ
सोमवार, 1 अक्तूबर 2012
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
http://veerubhai1947.blogspot.com/