चर्चा मंच सजा रहा, मैं तो पहली बार | पोस्ट आपकी ले कर के, "दीप" करे आभार || आपकी उम्दा पोस्ट बुधवार (17-10-12) को चर्चा मंच पर | सादर आमंत्रण | सूचनार्थ |
ऐसे रविकर को कैंटन के सौ सौ प्रणाम .आप विज्ञान को भी कुंडली में ढालके बोध गम्य बना रहें हैं व्यंग्य और तंज को भी .हाँ रविकर जी ,कम खर्च बाला नशीं ,"हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा" का भाई है .
भल लागि बड़ी यह उत्तम रचना रचि कीन्हि बड़ी मनुसाई ।
ReplyDeleteचर्चा मंच सजा रहा, मैं तो पहली बार |
ReplyDeleteपोस्ट आपकी ले कर के, "दीप" करे आभार ||
आपकी उम्दा पोस्ट बुधवार (17-10-12) को चर्चा मंच पर | सादर आमंत्रण |
सूचनार्थ |
रविकर जी तो ब्लॉग जगत के दिनकर हैं ,
ReplyDeleteचक्र धारी अशोक हैं ,
आशु कविता के सिरमौर हैं .
इनका न कोई ओर है न छोर (ओर बोले तो सिरा )
ऐसे रविकर को कैंटन के सौ सौ प्रणाम .आप विज्ञान को भी कुंडली में ढालके बोध गम्य बना रहें हैं व्यंग्य और तंज को भी .हाँ रविकर जी ,कम खर्च बाला नशीं ,"हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा" का भाई है .
कन्यक रूप बुआ भगिनी घरनी ममता बधु सास कहाई-
ReplyDeleteमत्तगयन्द सवैया
नारि सँवार रही घर बार, विभिन्न प्रकार धरा अजमाई ।
कन्यक रूप बुआ भगिनी घरनी ममता बधु सास कहाई ।
सेवत नेह समर्पण से कुल, नित्य नयापन लेकर आई ।
जीवन में अ
धिकार मिले कम, कर्म सदा भरपूर निभाई ।।
गौमुख से निकलती गंगा का आवेग और निर्मल भाव लिए है रचना .बधाई .
शक्तिरूपें संस्थिता ..नमस्तस्यै नमस्तस्यै.
ReplyDelete