भल लागि बड़ी यह उत्तम रचना रचि कीन्हि बड़ी मनुसाई ।
रविकर जी तो ब्लॉग जगत के दिनकर हैं ,चक्र धारी अशोक हैं ,आशु कविता के सिरमौर हैं .इनका न कोई ओर है न छोर (ओर बोले तो सिरा )ऐसे रविकर को कैंटन के सौ सौ प्रणाम .आप विज्ञान को भी कुंडली में ढालके बोध गम्य बना रहें हैं व्यंग्य और तंज को भी .हाँ रविकर जी ,कम खर्च बाला नशीं ,"हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा" का भाई है .
कन्यक रूप बुआ भगिनी घरनी ममता बधु सास कहाई-मत्तगयन्द सवैया नारि सँवार रही घर बार, विभिन्न प्रकार धरा अजमाई ।कन्यक रूप बुआ भगिनी घरनी ममता बधु सास कहाई ।सेवत नेह समर्पण से कुल, नित्य नयापन लेकर आई ।जीवन में अधिकार मिले कम, कर्म सदा भरपूर निभाई ।।गौमुख से निकलती गंगा का आवेग और निर्मल भाव लिए है रचना .बधाई .
शक्तिरूपें संस्थिता ..नमस्तस्यै नमस्तस्यै.
भल लागि बड़ी यह उत्तम रचना रचि कीन्हि बड़ी मनुसाई ।
ReplyDeleteरविकर जी तो ब्लॉग जगत के दिनकर हैं ,
ReplyDeleteचक्र धारी अशोक हैं ,
आशु कविता के सिरमौर हैं .
इनका न कोई ओर है न छोर (ओर बोले तो सिरा )
ऐसे रविकर को कैंटन के सौ सौ प्रणाम .आप विज्ञान को भी कुंडली में ढालके बोध गम्य बना रहें हैं व्यंग्य और तंज को भी .हाँ रविकर जी ,कम खर्च बाला नशीं ,"हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा" का भाई है .
कन्यक रूप बुआ भगिनी घरनी ममता बधु सास कहाई-
ReplyDeleteमत्तगयन्द सवैया
नारि सँवार रही घर बार, विभिन्न प्रकार धरा अजमाई ।
कन्यक रूप बुआ भगिनी घरनी ममता बधु सास कहाई ।
सेवत नेह समर्पण से कुल, नित्य नयापन लेकर आई ।
जीवन में अ
धिकार मिले कम, कर्म सदा भरपूर निभाई ।।
गौमुख से निकलती गंगा का आवेग और निर्मल भाव लिए है रचना .बधाई .
शक्तिरूपें संस्थिता ..नमस्तस्यै नमस्तस्यै.
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