पुरानी रचना-
उच्च-सदन में हल्ला है ।
मुख-मुन्ना दुमछल्ला है ।।
जोरू ही जोते जमीन जब
बैठा मरद निठल्ला है ।।
विकलांगो के रिक्शे पर
बैठ चुका गोरिल्ला है ।।
जान कौड़ियों में बिकती
मँहगा राशन गल्ला है ।।
देह-देहली देहली की
बिन भूतल दस-तल्ला है ।।
विकट मर्ज की दवा इधर
बंद यहाँ का पल्ला है ।।
अब भी कोशिश जारी है-
मरता नहीं मुहल्ला है ।।
बेच रहा रविकर जमीर
कायनात कुल दल्ला है ।।
उच्च-सदन में हल्ला है ।
मुख-मुन्ना दुमछल्ला है ।।
जोरू ही जोते जमीन जब
बैठा मरद निठल्ला है ।।
विकलांगो के रिक्शे पर
बैठ चुका गोरिल्ला है ।।
जान कौड़ियों में बिकती
मँहगा राशन गल्ला है ।।
देह-देहली देहली की
बिन भूतल दस-तल्ला है ।।
विकट मर्ज की दवा इधर
बंद यहाँ का पल्ला है ।।
अब भी कोशिश जारी है-
मरता नहीं मुहल्ला है ।।
बेच रहा रविकर जमीर
कायनात कुल दल्ला है ।।
जान कौड़ियों में मिल जाए-
ReplyDeleteमँहगा राशन गल्ला है ।।
विकलांगो के रिक्से पर अब
चुका बैठ गोरिल्ला है ।।
बहुत बढ़िया तंज हालात का तप्सरा कहिये इसे ,छोटी बहर की बड़ी गजल न कहिये .भाई साहब !थोड़ा खर्च करके चीज़ को सुन्दर बना देना ,
छोटी बहर में सुन्दर गजल लिखना कम खर्च बाला नशीं होना है .बधाई .कम शब्दों में ज्यादा और विस्फोटक अर्थ भरना बाला नशीं होना है .आप हों न ऐसे
ही किरदार .
इटली का दामाद बना भारत का जीजा ......पूरी कीजिए हुज़ूर .अपेक्षा है बाबू आपसे .