लछमी घर की अति नाज पली
,
मुख-माथ मनोहर तेज रहे
कल की कलिका ससुराल चली,नम नैनन से सब भेज रहे
मनुहार करें मनमोहन से
, सँवरी सजती सुख-सेज रहे
बिटिया भगिनी भयभीत भई, पितु
भ्रात दहेज सहेज रहे ||
तन मानव का मति दानव की,धन-लोलुप निर्मम दुष्ट
बड़े
उजले कपड़े नकली मुखड़े, मुँह फाड़ खड़े अकड़े-अकड़े
बन हाट बजार बियाह गये, विधि नीति कुछेक गये पकड़े
कुछ युक्ति करो भय मुक्त करो,यह रीत बुरी जड़ से उखड़े ||
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विगत पोस्टों पर हुआ, पाठक मन क्या याद ?
पाठक मन क्या याद, सशक्तिकरण नारी का ।
बाल श्रमिक पर काव्य, करो अब दाहिज टीका ।
रचे सवैया खूब, लीजिये हिस्सा जम के ।
रहें तीन दिन डूब, पोस्ट पर अरुण निगम के ।।
सब रखते अपनी बात,एक समा छा जाता,,,
कसें कसौटी पर जरा , कितना सभ्य समाज
कितना सभ्य समाज , बढ़े हैं कितना आगे
कितने नींद में अबतक, कितने अबतक जागे
बिटिया हो खुशहाल , न होवे पिता अपाहिज
जीना करे हराम , दैत्य - दानव है दाहिज ||
स्वागत मैं मन से करूँ ,आप हैं आदरणीय
आप हैं आदरणीय , लाभ अनुभव का दीजे
बेशकीमती सीख , यहाँ दे उपकृत कीजे
हो दहेज का अंत , किस तरह दियो बताये
किस विधि मिटे कलंक,सुखद दिन कैसे आये ||