लम्बे-लम्बे इन्तजार से, खुब तड़पाते हो |
गोदी में सिर रखकर प्रियतम गीत सुनाते हो |
देर से आने की झूठी, सब - गाथा गाते हो,
पलकें पोल खोलती फिर भी बात बनाते हो |
एक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,
अनमयस्क से इधर उधर कर समय बिताते हो |
रह-रह कर के विरह-अग्नि बरबस भड़काते हो,
रह-रह करके पल-पल तन-मन आग लगाते हो |
शब्दों के तुम बड़े खिलाड़ी भाव जमाते हो
अवसर पाकर अंगुली पकड़ी "पहुंचा" पाते हो |
प्यासी धरती पर रिमझिम सावन बरसाते हो
मन-झुरमुट में हौले से प्रिय फूल खिलाते हो |
देर से आने की झूठी, सब - गाथा गाते हो,
ReplyDeleteपलकें पोल खोलती फिर भी बात बनाते हो |
बहुत सुंदर रचना
क्या कहने
बात बनाने में माहिर लगते हो
ReplyDeleteयूं ही हर पल मन को छलते हो :):)
सच्चाई बयान कर दी है
बहुत खूब ..बधाई
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