*ताली मद माता मनुज, पाय भोगता कोष ।
पिए झेल अवहेलना, किन्तु बजाये जोश ।।
ताड़ी / चाभी / करतल ध्वनि
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पीड़ा बेहद जाय बढ़, अंतर-मन अकुलाय ।
जख्मों की तब नीलिमा, कागद पर छा जाय । 1।
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करे बहाना आलसी, अश्रु बहाना काम |
होय दुर्दशा देह की, जब से लगी हराम ।। |
सज्जन सी छवि पा गया, कर शत सत-संवाद ।
दुर्जन छवि हित किन्तु है, काफी एक विवाद ।।
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आदिकाल की नग्नता, गई आज शरमाय ।
परिधानों में पापधी , नंगा-लुच्चा पाय ।। |
रविकर पूंजी नम्रता, चारित्रिक उत्कर्ष ।
दुर्जन होवे दिग्भ्रमित, समझ दीनता *अर्श ।।
*अश्लील
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क्या बात, बहुत सुंदर
ReplyDeleteविजयादशमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं
वाह !
ReplyDeleteदशहरा मुबारक भाई साहब !
ReplyDeleteपीड़ा बेहद जाय बढ़, अंतर-मन अकुलाय ।
ReplyDeleteजख्मों की तब नीलिमा, कागद पर छा जाय । बहुत खूब .
टिपण्णी जब जब हम करे गायब वह हो जाय
इसका करो उपाय कविवर कुछ तो करो उपाय .
पीड़ा बेहद जाय बढ़, अंतर-मन अकुलाय ।
ReplyDeleteजख्मों की तब नीलिमा, कागद पर छा जाय । 1।..........
सुंदर प्रस्तुति ...विजयादशमी की हादिक शुभकामनाये,,,
पीड़ा बेहद जाय बढ़, अंतर-मन अकुलाय ।
ReplyDeleteजख्मों की तब नीलिमा, कागद पर छा जाय । 1।
वियोगी होगा पहला कवि ,आह से निकला होगा गान ,
निकल कर अधरों से चुपचाप ,बही होगी कविता अनजान .
पीड़ा में आनंद जिसे हो आये मेरी मधुशाला .
आये रविकर की शाला .