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में रविकर की ये रचनाएँ भी स्थापित स्तर को ना छू पाई
और प्रतियोगिता रद्द करनी पड़ी । उत्कृष्ट साहित्यिक गतिविधियों के लिए शामिल हों OBO में
(नौ - कुण्डलियाँ)
(शक्ति)
पहचाने नौ कन्यका, करे समस्या-पूर्ति ।
दुर्गा चंडी रोहिणी, कल्याणी त्रिमूर्ति ।
कल्याणी त्रिमूर्ति, सुभद्रा सजग कुमारी ।
शाम्भवी संभाव्य, कालिका की अब बारी ।
लम्बी झाड़ू हाथ, लगाए अकल ठिकाने ।
असुर ससुर हत्यार, दुष्ट मानव घबराने ।।
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(भैया)
ताकें आहत औरतें, होती व्यथित निराश ।
छुपा रहे मुंह मर्द सब, दर्द गर्द एहसास ।
दर्द गर्द एहसास, कुहांसे से घबराए ।
पिता पड़ा बीमार, खरहरा पूत थमाये ।
मातु-दुलारा पूत, भेज दी बिटिया नाके ।
बहन बहारे *बगर, बहारें भैया ताके ।।
*बड़े घर के सामने का स्थान
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(इलाज)
मेंहदी वाले हाथ में, लम्बी झाड़ू थाम ।
हाथ बटा के बाप का, कन्या दे पैगाम ।
कन्या दे पैगाम, पड़े वे ज्वर में माँदे ।
करें सफाई कर्म, *मेट छुट्टियाँ कहाँ दे ।
वे दैनिक मजदूर, गृहस्थी सदा संभाले ।
हाथ डाक्टर-फीस, हाथ लें मेंहदी वाले ।
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(दहेज़)
आठ वर्ष की बालिका, मने बालिका वर्ष ।
पैरों में चप्पल चपल, झाड़ू लगे सहर्ष ।
झाड़ू लगे सहर्ष, भ्रूण जिन्दा बच पाया ।
यही नारि उत्कर्ष, मरत बापू समझाया ।
कर ले जमा दहेज़, जमा कर गर्द फर्श की ।
तेज बदलता दौर, जिन्दगी आठ वर्ष की ।।
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(छल)
भोली भाली भली भव, भाग्य भरोसा भूल ।
लम्बी झाड़ू हाथ में, बनता कर्म उसूल ।
बनता कर्म उसूल, तूल न देना भाई ।
ढूँढ समस्या मूल, जीतती क्यूँ अधमाई ।
खाना पीना मौज, मार दुनिया को गोली ।
मद में नर मशगूल, छले हर सूरत भोली ।।
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( मजबूरी )
कैसा रेल पड़ाव है, कैसा कटु ठहराव ।
'कै' सा डकरे सामने, कूड़ा गर्द जमाव ।
कूड़ा गर्द जमाव, बिगड़ता स्वास्थ्य निरीक्षक ।
कल करवाऊं साफ़, बताया आय अधीक्षक ।
कालू धमकी पाय, जब्त हो जाए पैसा ।
बिटिया देता भेज, करे क्या रोगी ऐसा ??
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(कानून)
इंस्पेक्टर-हलका कहाँ, हलका है हलकान ।
नहीं उतरता हलक से, संविधान अपमान ।
संविधान अपमान, तान कर लाओ बन्दा ।
है उल्लंघन घोर, डाल कानूनी फंदा ।
यह पढने की उम्र, बना ले भावी बेहतर ।
अपराधी पर केस, ठोंक देता इंस्पेक्टर ।।
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(सम-सामायिक)
काटे पटके जला दे, कंस छले मातृत्व |
पटक सिलिंडर सातवाँ, सुनत गगन वक्तृत्व |
सुनत गगन वक्तृत्व, आठवाँ खुदरा आया |
जान बचाकर भाग, पाप का घड़ा भराया |
कन्या झाड़ू-मार, बोझ अपनों का बांटे |
कमा रुपैया चार, जिन्दगी अपनी काटे ||
दाल हमारी न गली, सात सिलिंडर शेष ।
ख़तम कोयला की कथा, दे बिटिया सन्देश ।
दे बिटिया सन्देश, भगा हटिया वो भूखा ।
पर खुदरा पर मार, पड़ा था पूरा सूखा ।
वालमार्ट ना जाय, बड़ी विपदा लाचारी ।
कन्या रही बुहार, गले ना दाल हमारी ।।
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(आठ-दोहे )
सींक-सिलाई कन्यका, सींक सिलाई बाँध ।
गठबंधन हो दंड से, कूड़ा-करकट साँध ।|
जब पानी पोखर-हरा, कहाँ खरहरा शुद्ध ।
नलके से धो ले इसे, फिर होगा न रुद्ध |।
डेढ़ हाथ की तू सखी, छुई मुई सी बेल ।
पांच हाथ का दंड यह, कैसे लेती झेल ??
अब्बू-हार बिसार के, दब्बू-हार बुहार ।
वे तो पड़े बुखार में, खाए मैया खार ।।
कपड़ा कंघी झाड़ मत, पथ का कूड़ा झाड़ ।
टूटा तेरे जन्मते, कुल पर बड़ा पहाड़ ।।
झाड़ू थामे हाथ दो, करते दो दो हाथ ।
हाथ धो चुकी पाठ से, सफा करे कुल पाथ ।|
सड़ा गला सा गटर जग, कन्या रहे सचेत ।
खुल न जाए खलु हटकि, खलु डाले ना रेत ।|
करते मटियामेट शठ, नीति नियंता नोच ।
जांचे कन्या भ्रूण खलु, मारे नि:संकोच ।।
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(दोहे / कुंडलियां)
काँव काँव काकी करे, काकचेष्टा *काकु ।
करे कर्म कन्या कठिन, किस्मत कुंद कड़ाकु ।।
*दीनता का वाक्य
आठ आठ आंसू बहे, रोया बुक्का फाड़ ।
बोझिल बापू चल बसा, भूल पुरानी ताड़ ।।
हुई विमाता बाम तो, करती बिटिया काम ।
शुल्क नहीं शाला जमा, कट जाता है नाम ।।
रविकर बचिया फूल सी, खेली "झाड़ू-फूल" ।
झेले "झाड़ू-नारियल", झाड़े करकट धूल ।।
(फूल-झाड़ू -घर के अन्दर प्रयुक्त की जाती है । नारियल झाड़ू बाहर की सफाई के लिए।)
बढ़नी कूचा सोहनी, कहें खरहरा लोग ।
झाड़ू झटपट झाड़ दे, यत्र-तत्र उपयोग ।।
सोनी *सह न सोहती, बड़-सोहनी अजीब ।
**दंड *सहन करना पड़े, झाड़ू मार नसीब ।।
*यमक
**श्लेष
दीखे *झाड़ू गगन में, पुच्छल रहा कहाय ।
इक *झाड़ू सोनी लिए, उछल उछल छल जाय ।
उछल उछल छल जाय, भाग्य पर झाड़ू *फेरे ।
*फेरे का सब फेर, विमाता आँख तरेरे ।
सत्साहस सद्कर्म, पाठ जीवन के सीखे ।
पाए बिटिया लक्ष्य, अभी मुश्किल में दीखे ।।
* फेरना / शादी के फेरे
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ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteआपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 22-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1040 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
aapki post achchi lagi...
ReplyDeletekabhi time mile to mere blog par bhi aaeeye...
कुंडलियाँ और दोहे.......एक से बढकर एक...........
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति.
bahut kuch kah diya dohe ke madham se ......excellent .....
ReplyDeleteशानदार...सार्थक कुण्डलिया!!
ReplyDeleteनवरात्रि और दशहरा की शुभकामनाएँ!!
कपड़ा कंघी झाड़ मत, पथ का कूड़ा झाड़ ।
ReplyDeleteटूटा तेरे जन्मते, कुल पर बड़ा पहाड़ ।।
झाड़ू थामे हाथ दो, करते दो दो हाथ ।
हाथ धो चुकी पाठ से, सफा करे कुल पाथ ।|
सड़ा गला सा गटर जग, कन्या रहे सचेत ।
खुल न जाए खलु हटकि, खलु डाले ना रेत ।|
करते मटियामेट शठ, नीति नियंता नोच ।
जांचे कन्या भ्रूण खलु, मारे नि:संकोच ।।
मार्मिक प्रसंग पर काव्यात्मक विवरण .
अपनी बात को कहने में सफल रचना सुन्दर दोहे |
ReplyDeleteमार्मिक प्रसंग आनुप्रासिक करुणा के संग .
ReplyDeleteram ram bhai
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मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012
गेस्ट पोस्ट ,गज़ल :आईने की मार भी क्या मार है
http://veerubhai1947.blogspot.com/
भोली भाली भली भव, भाग्य भरोसा भूल ।
लम्बी झाड़ू हाथ में, बनता कर्म उसूल ।
बनता कर्म उसूल, तूल न देना भाई ।
ढूँढ समस्या मूल, जीतती क्यूँ अधमाई ।
खाना पीना मौज, मार दुनिया को गोली ।
मद में नर मशगूल, छले हर सूरत भोली ।।
पीड़ा बेहद जाय बढ़, अंतर-मन अकुलाय ।
ReplyDeleteजख्मों की तब नीलिमा, कागद पर छा जाय । बहुत खूब .
टिपण्णी जब जब हम करे गायब वह हो जाय
इसका करो उपाय कविवर कुछ तो करो उपाय .