Virendra Kumar Sharma
जायदाद आधी मिले, कानूनन यह सत्य |
बेटी को दिलवा दिया, हजम करो यह कृत्य | हजम करो यह कृत्य, भृत्य हैं गिरिजा सिब्बल | चाटुकारिता काम, दिया उत्तर बेअक्कल | माँ की दो संतान, बटेगा आधा आधा | देखे हिन्दुस्तान, कहीं डाले ना बाधा || बहुओं पर इतनी कृपा, सौंप दिया सरकार । बेटी से क्या दुश्मनी, करते हो तकरार । करते हो तकरार, होय दामाद दुलारा । छोटे मोटे गिफ्ट, पाय दो-चार बिचारा । पीछे ही पड़ जाय, केजरी कितना काला । जाएगा ना निकल, देश का यहाँ दिवाला । |
संडे है आज तुझे कर तो रहा हूँ याद
सुशील
सन्डे पर क्यूँ न लिखा, उसके कारण तीन |
हफ्ते भर की साड़िया, कुरता पैंट मशीन |
कुरता पैंट मशीन, इन्हें प्रेस करना पड़ता |
ख़ाक मिले अवकाश, किचेन का काम अखरता |
जाती वो बाजार, बैठ मैं देता अंडे |
हाय हाय यह दिवस, बनाया क्यूँ रे सन्डे ||
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वो औरत
ई. प्रदीप कुमार साहनी प्रश्न सही है मित्रवर, किन्तु पुरुष का दोष । इतना ज्यादा है नहीं, वह रहता खामोश । वह रहता खामोश, सास ननदें दें ताने । महिलाओं का जोर, पुरुष भी उनकी माने । सीधा अत्याचार, नारियां शत्रु रही हैं । घोर अंध-विश्वास, नहीं यह प्रश्न सही है ।। । |
जीवन के रंग
Maheshwari kaneri
जीवन में भरती रहे, सदा अनोखे रंग । धन्य धन्य शुभ लेखनी, रहे हमेशा संग ।। |
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ये है नारी शक्ति
Rajesh Kumari
नमो नमो हे देवियों, सादर शीश नवाए । रविकर करता वंदना, कृपा करो हे माय । कृपा करो हे माय, धाय को भी हम पूजे । पूजे नदी पहाड़, पूजते इंगित दूजे । करे मातु कल्याण, समर्पण सहन-शक्ति है । पूँजू पावन रूप, हृदय में भरी भक्ति है ।। |
देखता हूँ दोनों रचनाएँ |
ReplyDeleteनई पोस्ट:- वो औरत
आप तो बड़े और हिट रचनाकार बन गए हैं भई !
ReplyDeleteबेहद सरस और मनभावन।
ReplyDeleteरचनाकार ही हैं
ReplyDeleteरचना को अपनी
बतकही से करते
चले जाते हैं हिट
इनकी कही बस
गजब हो जाती है
रचना हमारी
पिट जाती है ! :))))
हा हा हा हा -
Deleteक्या डाक्टर साहब-
मैं तो अपना दर्द बाँट रहा था-
छुट्टी के दिन घर में बड़ी दुर्दशा हो जाती है भाई-
सादर ||
हा हा हा हा -
Deleteक्या डाक्टर साहब-
मैं तो अपना दर्द बाँट रहा था-
छुट्टी के दिन घर में बड़ी दुर्दशा हो जाती है भाई-
सादर ||
Manu Tyagi has left a new comment on your post "संडे है आज तुझे कर तो रहा हूँ याद":
आपकी रचना सोना उस पर रविकर जी की टिप्पणी सुहागा
हा हा हा
Deleteदेख लीजिये दोनो जगह की घडि़यां उल्टी चल रही है़ :))
कूड़ा कचड़ा हर गली, चौराहों पर ढेर ।
ReplyDeleteघर में क्या कुछ कम पड़ा, ई-कचड़ा का फेर ।
ई-कचड़ा का फेर, फेर के नया खरीदें ।
निर्माता निपटाय, होंय ना कहीं उनीदें ।
धरती रही पुकार, प्रदूषण का यह पचड़ा ।
ई-खरदूषण रूप, दशानन कूड़ा-कचड़ा ।।
इस सुन्दर रचना के लिए बधाई रविकर जी "कांग्रेसी कुतर्क "को चर्चा वार बनाने के लिए शुक्रिया .एक आलेख और आरहा है -अथ वागीश उवाच -ये कांग्रेसी हरकारे .
नर नारी दोनो रहे इक गाडी के चाक
ReplyDeleteदोनो रखें संतुलन तो रस्ते कच्चे पक्के
सभी पार हो जायें न आये कोई अडचन
दोनो को चलना होगा मिलाये रख कर के मन ।
पहली दोनो भी बहुत अच्छी लगीं कांग्रेसी चिंता ।
समस्या मूलक बेहतरीन रचना है "ई -कचरा " रेडिओ धर्मी कचरे की तरह यह भी पृथ्वी के लिए भस्मासुर बन गया है .भाई साहब प्रयोग कूड़ा-करकट है कूड़ा -कचड़ा नहीं .कचरा प्रचलित है हिंदी में ,कचड़ा नहीं .
ReplyDeleteram ram bhai
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सोमवार, 8 अक्तूबर 2012
अथ वागीश उवाच :ये कांग्रेसी हरकारे