राज प्रयाग बसे सर सौरभ दीपक-ज्योति जलावत हैं |
पूज रहे तुलसी अति पावन श्रीकृति गोद खिलावत हैं |
मुग्ध दिखे चहुँ-ओर सबै पुरखों प्रति भाव दिखावत हैं |
हुक्का-हाकिम हुक्म दे, नहीं पटाखा फोर
हुक्का-हाकिम हुक्म दे, नहीं पटाखा फोर ।
हुक्का-हाकिम हुक्म दे, नहीं पटाखा फोर ।
इस कुटीर उद्योग का, रख बारूद बटोर ।
रख बारूद बटोर, इन्हीं से बम्ब बनाना ।
एक शाम इक साथ, प्रदूषण क्यूँ फैलाना ?
मारे कीट-विषाणु, तीर नहिं रविकर तुक्का ।
ताश बैठ के खेल, खींच के दो कश हुक्का ।
सुंदर प्रस्तुति । दीपावली पर्व की अनेक शुभ कामनाएं ।
ReplyDeleteबहुत बढिया
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति ............आपको भी स: परिवार दीपावली की शुभकामनायें.......
ReplyDelete.हुक्का-हाकिम हुक्म दे, नहीं पटाखा फोर
ReplyDeleteअरे भाई साहब कुंडली कहाँ गई इस बोक्स की
राज प्रयाग बसे सर सौरभ दीपक-ज्योति जलावत हैं |
ReplyDeleteपूज रहे तुलसी अति पावन श्रीकृति गोद खिलावत हैं |
मुग्ध दिखे चहुँ-ओर सबै पुरखों प्रति भाव दिखावत हैं |
मंगल मंगल हो घर-बाहर लख्मि-गणेश मनावत हैं |
मुदित भयो मन पढ़ी के जाकू .
दीपावली-पर्व-समुच्चय' की सपरिवार वधाई के साथ -
ReplyDeleteबात सटीक कही है भैया, 'मौत' जने 'बारूद' |
भय फैलाये हृदय में सबा के ,'प्यार'का मिटे वजूद ||
ReplyDeleteहुक्का-हाकिम हुक्म दे, नहीं पटाखा फोर
हुक्का-हाकिम हुक्म दे, नहीं पटाखा फोर ।
इस कुटीर उद्योग का, रख बारूद बटोर ।
रख बारूद बटोर, इन्हीं से बम्ब बनाना ।
एक शाम इक साथ, प्रदूषण क्यूँ फैलाना ?
मारे कीट-विषाणु, तीर नहिं रविकर तुक्का ।
ताश बैठ के खेल, खींच के दो कश हुक्का ।
ज़वाब नहीं रविकर जी की इस धारदार कुंडली का ,राजनीतिक तंज का .बधाई .