बाबा बापू चल बसे, बसे अनोखे पूत ।
संस्कार की छत ढहे, अजब गजब करतूत ।।
चिंगारी भड़का गई, जली बुझी दिल-आग।
जमी समय की राख है, मत कुरेद कर भाग ।।
जल-धारा अनुकूल पा, चले जिंदगी नाव ।
धूप-छाँव लू कँपकपी, मिलते गए पड़ाव ।।
दिल से निकली बात जब, जाए ज्यादा दूर ।
मचे तहलका जगत में, नव-गुल खिले जरूर ।
महलों में बिगड़ें बड़े, बच्चों की क्या बात ।
नया घोसला ले बना, मार महल को लात ।
बच्ची बहिनी बन बुआ, मौसी बीबी माय ।
नए नए नित नाम दे, नित सूरत बदलाय ।।
पटाक्षेप होने चला, सुख दुःख का यह खेल ।
करवट देखो ऊंट की, मत कर ठेलमठेल ।।
चूहे पहले भागते, डूबे अगर जहाज ।
गिरती देख दिवार को, ईंट करे नहिं लाज ।
चर्चा मंच में बिठाने के लिए आभार ,नेहा ,प्यार ,
ReplyDeleteरूप तेरा साकार ,लेता एक आकार ,
कुंडली तेरी जय जय .
चूहे पहले भागते, डूबे अगर जहाज ।
ReplyDeleteगिरती देख दिवार को, ईंट करे नहिं लाज ।
Posted by रविकर at 23:12
बहुत खूब कहा एक सत्य को दोहे के मार्फ़त .
चिंगारी भड़का गई, जली बुझी दिल-आग।
ReplyDeleteजमी समय की राख है, मत कुरेद कर भाग ।।
बहुत खूब !बहुत खूब !बहुत खूब !
ReplyDeleteजल-धारा अनुकूल पा, चले जिंदगी नाव ।
ReplyDeleteधूप-छाँव लू कँपकपी, मिलते गए पड़ाव ।।........
ये जीवन है.....बेहतरीन प्रस्तुति.
बेहतरीन अभिव्यक्ति | बहुत खूब |
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