20 November, 2012

भक्त पापधी पानि-शत, करें प्रदूषित पानि-रविकर



'चित्र से काव्य तक' प्रतियोगिता अंक -२०


 http://openbooksonline.com/
 रविकर की कुछ टिप्पणियाँ 
 दोहा 
भक्त पापधी पानि-शत, करें प्रदूषित पानि ।
पानिप घटती पानि की,  बनता बड़ा सयानि ।


विधाता छंद 
खड़ाऊं जो भरत मांगें नहीं करते मना रामा |
उठाये शीश पर जाते चुकायें वो बड़ा नामा |
नहाए है सवेरे ही हमारे राम घनश्यामा ।
धरा ने देख लो कैसे फ़टाफ़ट चिन्ह-पद थामा ।।


  मदिरा सवैया 
तुलसी तमिसा तड़के तटनी तरखा तर की परवाह नहीं ।
तब तामस तापित तृष्णज से तनु-तृप्ति बुझावन चाह रही ।
धिक नश्वर देह सनेह बड़ा, पतनी ढिग दुर्गम दाह सही ।
तन सूख गया झट लौट गए, पग चिन्ह लखे भर आह रही  ।। 

 तमिसा = घाना अँधेरा
 तरखा = तेज बहाव
ततनी = नदी
तृष्णज = लोभी 

 दुर्मिल सवैया 
नित घूम रहे खुब रेल चढ़े पकवान भले चख लेवत भैया |
पर नीर नहीं जब शुद्ध मिले चलती थमती उन की यह नैया |
अनमोलक वाटर बोतल से तब पीवत है इक घूँट घुमैया |
रुचती मनमोहक है "मदिरा", शुभ देवत है रवि भ्रात बधैया ||

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पी रविकर का रक्त, करे बेमतलब हुल्लड़-


फैलाए आँखे कुटिल, बाबा से कर भेंट
सदा पिनक में आलसी, लेता सर्प लपेट ।

लेता सर्प लपेट, समझता खुद को औघड़
पी रविकर का रक्त, करे बेमतलब हुल्लड़

कातिल सनकी मूढ़, पहुँचता बिना बुलाये 
दुराचार नित करे, धर्म का भ्रम फैलाए ।

8 comments:

  1. 'काव्य-शास्त्र' का वोध,है अद्भुत हर छन्द में |
    अलंकार-परिबोध, रखता कौन है आजकल !!

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!

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  3. बहुत सुंदर । प्रभु पद कमल पावन जल ।
    सुंदर दोहे सवैया, दोहे और कुंडली ।

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  4. सदा की भाँति ..बढ़िया..

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  5. दुर्मिल सवैया
    नित घूम रहे खुब रेल चढ़े पकवान भले चख लेवत भैया |
    पर नीर नहीं जब शुद्ध मिले चलती थमती उन की यह नैया |
    अनमोलक वाटर बोतल से तब पीवत है इक घूँट घुमैया |
    रुचती मनमोहक है "मदिरा", शुभ देवत है रवि भ्रात बधैया ||

    काव्य सरणी प्रवाहित कर दी रविकर जी ने .आनंद भयो मुंबई में .

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  6. गूगल दादा धन्य हम, बाँट रहे तुम रैंक्स-रविकर
    बहुत बहुत आभार पाठक-गण

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    गूगल दादा धन्य हम, बाँट रहे तुम रैंक्स |
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    दोनो पाए अंक, बहुत आभार तुम्हारा ||
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    मुबारक .

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  7. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....

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  8. बहुत सुन्दर उत्कष्ट अभिव्यक्ति

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