21 November, 2012

कुचल सकल आतंक, बचें नहिं पाकिस्तानी- रविकर


शुरू कहानी जब हुई, करो फटाफट पूर ।
झूलें फांसी शेष जो, क्यूँ है दिल्ली दूर ??


क्यूँ है दिल्ली दूर, कड़े सन्देश जरूरी ।
एक एक निपटाय, प्रक्रिया कर ले पूरी 


कुचल सकल आतंक, बचें नहिं पाकिस्तानी ।
सुदृढ़ इच्छा-शक्ति, हुई अब शुरू कहानी ।।

 

2 comments:

  1. आज तो दिल्ली उतनी दूर नही जितनी पहले थी। होगी सफलता क्यों नही जब प्रेम ही भगवान है। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद।

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  2. हे कवि महोदय,

    कविता-सृजन और उस पर काव्य चर्चा किसी भी घटना के होने की गवाही है।

    चाहे वह हुई हो अथवा न हुई हो। इसलिए आज के माहौल में ज़रा सावधान ....

    महामहिम पालतू [POLTU] महाराज का यह दूसरा महत्वपूर्ण काम है : 'खारिज़ करना'

    — जिसकी इतने दिनों से सेवा हो रही हो ...
    — जिसको मच्छरी दंश से हुए ज्वर से बचाने के भरसक प्रयास हुए हों ...
    — जिसकी मौत के कोई प्रमाणित साक्ष्य न हों ...

    "166 भारतीयों के हत्यारे की मृत्यु के बाद दया याचिका खारिज होती है और फिर मिनट के अन्दर ही फाँसी भी हो जाती है। इतनी तुरत-फुरत सरकारी क्रिया (एक्शन) तो एक रिकोर्ड हुई ना! '' सोचिये ज़रा ...

    जितने भी लोग इस गोपनीय कार्य को अंजाम देने में लगे रहे उनमें कोई भी विश्वसनीय है। जो एक झूठी बीमारी को छिपाने में पूरा तंत्र लगा देते हैं उनके लिए मच्छरी मौत को छिपाना बहुत सहज है। जिस कार्य को खुले आम किया जाना चाहिए था वह आखिर चोरी-छिपकर अंजाम देने की क्या जरूरत थी भला? सोचिये ज़रा ...

    जिस हत्यारे को हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट मौत की सजा सुनाकर चिंतित नहीं थे देश का माहौल बिगड़ने का अंदेशा केवल दूरदर्शी पार्टी (?) को ही था।

    अब जब वे जब एक मच्छरी मौत का क्रेडिट लेते हैं तो अचरज होता है।

    मुझे तो सरकार में चारों ही तरफ धोखा और फरेब करने वाले नज़र आते हैं।

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