श्री राम की सहोदरी : भगवती शांता सर्ग-1 / 2/ 3
से
कुण्डली
रविकर नीमर नीमटर, वन्दे हनुमत नाँह ।
विषद विषय पर थामती, कलम वापुरी बाँह । कलम वापुरी बाँह, राह दिखलाओ स्वामी । बहन शांता श्रेष्ठ, मगर हे अन्तर्यामी । नहीं काव्य दृष्टांत, उपेक्षित त्रेता द्वापर । रचवायें शुभ-काव्य, क्षमा मांगे अघ-रविकर । नीमटर=किसी विद्या को कम जानने वाला नीमर=कमजोर |
कुण्डली
मरने से जीना कठिन, पर हिम्मत न हार । कायर भागे कर्म से, होय कहाँ उद्धार ? होय कहाँ उद्धार, चलो पर-हित कुछ साधें । बनिए नहीं लबार, गाँठ जिभ्या पर बांधें । फैले रविकर सत्य, स्वयं पर जय करने से । जियो लोक हित मित्र, मिले न कुछ मरने से । |
घनाक्षरी
दीखते हैं मुझे दृश्य मनहर चमत्कारी कुसुम कलिकाओं से वास तेरी आती है | कोकिला की कूक में भी स्वर की सुधा सुन्दर प्यार की मधुर टेर सारिका सुनाती है | देखूं शशि छबि भव्य निहारूं अंशु सूर्य की - रंग-छटा उसमे भी तेरी ही दिखाती है | कमनीय कंज कलिका विहस 'रविकर' तेरे रूप-धूप का ही सुयश फैलाती है || |
ReplyDelete28 NOVEMBER, 2012
रचवायें शुभ-काव्य, क्षमा मांगे अघ-रविकर
श्री राम की सहोदरी : भगवती शांता सर्ग-1 / 2/ 3
से
कुण्डली
रविकर नीमर नीमटर, वन्दे हनुमत नाँह ।
विषद विषय पर थामती, कलम वापुरी बाँह ।
कलम वापुरी बाँह, राह दिखलाओ स्वामी ।
बहन शांता श्रेष्ठ, मगर हे अन्तर्यामी ।
नहीं काव्य दृष्टांत, उपेक्षित त्रेता द्वापर ।
रचवायें शुभ-काव्य, क्षमा मांगे अघ-रविकर ।
काव्य सौन्दर्य देखते ही बनता है इन पंक्तियों में .
कुण्डली
ReplyDeleteमरने से जीना कठिन, पर हिम्मत न हार ।
कायर भागे कर्म से, होय कहाँ उद्धार ?
होय कहाँ उद्धार, चलो पर-हित कुछ साधें ।
बनिए नहीं लबार, गाँठ जिभ्या पर बांधें ।
फैले रविकर सत्य, स्वयं पर जय करने से ।
जियो लोक हित मित्र, मिले न कुछ मरने से ।
गिरधर जैसी कुंडली ,गिरधर जैसा बोध ,
करले कितने भी जतन नहीं पायेगा शोध .
बात रविकर की चलती ,
गया गिरधर संग आगे ,सकल जग से है आगे .
कुण्डली
ReplyDeleteमरने से जीना कठिन, पर हिम्मत न हार ।
कायर भागे कर्म से, होय कहाँ उद्धार ?
होय कहाँ उद्धार, चलो पर-हित कुछ साधें ।
बनिए नहीं लबार, गाँठ जिभ्या पर बांधें ।
फैले रविकर सत्य, स्वयं पर जय करने से ।
जियो लोक हित मित्र, मिले न कुछ मरने से ।
लिखे सौदेश्य कुंडली ,रविकर कहलाये ,
बड़ों बड़ों को ये बहलाए .