"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - २५ |
पहली प्रस्तुति
डेंगू-डेंगा सम जमा, तरह तरह के कीट |
खूब पटाखे दागिए, मार विषाणु घसीट |
मार विषाणु घसीट, एक दिन का यह उपक्रम |
मना एकश: पर्व, दिखा दे दुर्दम दम-ख़म |
लौ में लोलुप-लोप, धुँआ कल्याण करेगा |
सह बारूदी गंध, मिटा दे डेंगू-डेंगा ||
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दूसरी प्रस्तुति
देह देहरी देहरा, दो, दो दिया जलाय ।
कर उजेर मन गर्भ-गृह, कुल अघ-तम दहकाय ।
कुल अघ तम दहकाय , दीप दस घूर नरदहा ।
गली द्वार पिछवाड़ , खेत खलिहान लहलहा ।
देवि लक्षि आगमन, विराजो सदा केहरी ।
सुख सामृद्ध सौहार्द, बसे कुल देह देहरी ।।
देह, देहरी, देहरा = काया, द्वार, देवालय
घूर = कूड़ा
लक्षि = लक्ष्मी
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उतरन बेशक पहनते, किन्तु मुखौटे त्याग ।
बड़े जुगाड़ी बड़े ये, अतिशय माहिर लाग ।
अतिशय माहिर लाग, मिले सत्ता से जाके ।
जर जमीन ले भाग, गया सब चीज उठा के ।
टैक्स चुरा के खाय, देखिये फिर भी अकड़न ।
मानो नेचुरल ग्रोथ, बाँट नहिं सकती उतरन ।।
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मत्तगयन्द सवैया
मीत समीप दिखाय रहे कुछ दूर खड़े समझावत हैं ।
बूझ सकूँ नहिं सैन सखे तब हाथ गहे लइ जावत हैं ।
जाग रहे कुल रात सबै, हठ चौसर में फंसवावत हैं ।
हार गया घरबार सभी, फिर भी शठ मीत कहावत हैं ।।
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जैसे आइ-क्यु नापते, ख़ुशी हमारी नाप ।
धन्ना सेठों को रहे, दीवाली संताप ।
दीवाली संताप, गरीबी चार दिया से ।
चार पटाखा फोड़, मनाये पर्व हिया से ।
रखे तयारी फौज, सदा सीमा पर वैसे ।
बेचारे मन मार, मनाते जैसे तैसे ।।
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दोहे
दे कुटीर उद्योग फिर, ग्रामीणों को काम ।
चाक चकाचक चटुक चल, स्वालंबन पैगाम ।।
हर्षित होता अत्यधिक, कुटिया में जब दीप ।
विषम परिस्थिति में पढ़े, बच्चे बैठ समीप ।।
माटी की इस देह से, खाटी खुश्बू पाय ।
तन मन दिल चैतन्य हो, प्राकृत जग हरषाय ।
बाता-बाती मनुज की, बाँट-बूँट में व्यस्त ।
बाती बँटते नहिं दिखे, अपने में ही मस्त ।।
अँधियारा अतिशय बढ़े , मन में नहीं उजास ।
भीड़-भाड़ से भगे तब, गाँव करे परिहास ।।
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त्योहारों की टाइमिंग, हतप्रभ हुआ विदेश ।
चौमासा बीता नहीं, आ जाता सन्देश ।
आ जाता सन्देश, घरों की रंग-पुताई ।
सजे नगर पथ ग्राम, नई दुल्हन की नाई ।
सब में नव उत्साह, दिशाएँ हर्षित चारों ।
लम्बी यह श्रृंखला, करूँ स्वागत त्योहारों ।।
प्रेम नेम से बट रहा, घृणा द्वेष त्याज्य । घृणा द्वेष अघ त्याज्य, अमावस यह अति पावन । स्वागत है श्री राम, आइये पाप नशावन । धूम आज सर्वत्र, यहाँ भी देवी हो ले । सुख सामृद्ध सौहार्द, दान दे पढ़कर रोले । |
पहली प्रस्तुति
ReplyDeleteडेंगू-डेंगा सम जमा, तरह तरह के कीट |
खूब पटाखे दागिए, मार विषाणु घसीट |
मार विषाणु घसीट, एक दिन का यह उपक्रम |
मना एकश: पर्व, दिखा दे दुर्दम दम-ख़म |
लौ में लोलुप-लोप, धुँआ कल्याण करेगा |
सह बारूदी गंध, मिटा दे डेंगू-डेंगा ||
मच्छर मरेगा डेंगू का लेकिन साथ में सांस की धौंकनी चलेगी दमा मरीजों की स्वान छिपेंगे बौखलाहट में इधर उधर .ये धुआं चौतरफा मार करता है .बढ़िया एक धरातल पर वैज्ञानिक चिंतन लिए है यह पोस्ट ,बधाई .
मीत तुम्हें हों,'दीवाली के दीप' मुबारक !
ReplyDelete'इन दीपों' में कहीं न् होवे,'धुआँ विकारक'||
'ज्योति'जले पर,'जलन' मत असर दिखाये -
केवल 'दीपों'में ही होवे 'जलती पावक' !!
मीत तुम्हें हों,'दीवाली के दीप' मुबारक !
ReplyDelete'इन दीपों' में कहीं न् होवे,'धुआँ विकारक'||
'ज्योति'जले पर,'जलन'कहीं मत असर दिखाये -
केवल 'दीपों'में ही होवे 'जलती पावक' !!
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बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteमन के सुन्दर दीप जलाओ******प्रेम रस मे भीग भीग जाओ******हर चेहरे पर नूर खिलाओ******किसी की मासूमियत बचाओ******प्रेम की इक अलख जगाओ******बस यूँ सब दीवाली मनाओ