वैचारिक इस क्रान्ति में, नए नए कुविचार ।
आकर्षित करते जगत, कुंद सनातन धार ।
कुंद सनातन धार, पुन: हो जाए तीखी ।
हे अमर्त्य बलवीर, नीति कर कृष्ण सरीखी ।
जीतेगा सुविचार, होय गुंजन ओंकारिक ।
भोगवाद की हार, जीत शाश्वत वैचारिक ।।
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घृत डालो नित प्रेम का, बनी रहे लौ-आग
उम्मीदों का जल रहा, देखो सतत चिराग |
घृत डालो नित प्रेम का, बनी रहे लौ-आग | बनी रहे लौ-आग, दिवाली चलो मना ले | अपना अपना दीप, स्वयं अंतस में बालें | भाई चारा बढे, भरोसा प्रेम सभी दो | सुख शान्ति-सौहार्द, बढ़ो हरदम उम्मीदों || |
वैचारिक क्रांति के इस युग में सनातन धर्म के विचार ही सही दिशा दे सकते हैं ये सत्य है कोई माने या न माने...
ReplyDeleteदीपोत्सव के मौके पर एक सार्थक सन्देश देती आपकी कलम
बहुत सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति .बधाई
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteरविकर तो सबका चहेता है और अनूठा भी!
उम्मीदों का जल रहा, देखो सतत चिराग |
ReplyDeleteघृत डालो नित प्रेम का, बनी रहे लौ-आग |
बनी रहे लौ-आग, दिवाली चलो मना ले |
अपना अपना दीप, स्वयं अंतस में बालें |
भाई चारा बढे, भरोसा प्रेम सभी दो |
सुख शान्ति-सौहार्द, बढ़ो हरदम उम्मीदों ||
बना रहे सौहाद्र आपका ,ब्लोगियों के बड़- भाग ,दिवाली कहे मुबारक .
वैचारिक इस क्रान्ति में, नए नए कुविचार ।
ReplyDeleteआकर्षित करते जगत, कुंद सनातन धार ।
कुंद सनातन धार, पुन: हो जाए तीखी ।
हे अमर्त्य बलवीर, नीति कर कृष्ण सरीखी ।
जीतेगा सुविचार, होय गुंजन ओंकारिक ।
भोगवाद की हार, जीत शाश्वत वैचारिक ।।
शाश्वत सत्य .सुविचार ही श्रेष्ठ विचार है बाकी सब भ्रान्ति है .हमें चर्चा मंच में बिठाने के लिए आभार .
bahut hi sundar aur rochak prastuti
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