नारी का पुत्री जनम, सहज सरलतम सोझ |
सज्जन रक्षे भ्रूण को, दुर्जन मारे खोज ||
नारी बहना बने जो, हो दूजी संतान
होवे दुल्हन जब मिटे, दाहिज का व्यवधान ||
नारी का है श्रेष्ठतम, ममतामय अहसास |
बच्चा पोसे गर्भ में, काया महक सुबास ||
रविकर *परुषा पथ प्रखर, सत्य-सत्य सब बोल ।
दुष्ट-मनों की ग्रन्थियां, लेती सखी टटोल ।
*काव्य में कठोर शब्दों / कठोर वर्णों / लम्बे समासों का प्रयोग
लेती सखी टटोल, भूलते जो मर्यादा ।
ऐसे मानव ढेर, कटुक-भाषण विष-ज्यादा ।
छलनी करें करेज, मगर जब पड़ती खुद पर ।
मांग दया की भीख, समर्पण करते रविकर ।।
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बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 03-12-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1082 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
.सार्थक दहेज़ :इकलौती पुत्री की आग की सेज
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना !
ReplyDelete~सादर!!!
नारी का है श्रेष्ठतम, ममतामय अहसास |
ReplyDeleteबच्चा पोसे गर्भ में, काया महक सुबास ||
यही तो उत्कर्ष और हासिल है योगदान है उसका इस कायनात को चलाये रखने में .लेकिन वह सिर्फ बच्चे
दानी नहीं है .सिर्फ योनी नहीं है जिसे गर्भ में ही दफ़्न कर दिया जाए .गिरा दिया जाए भ्रूण .
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी.बेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.
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