के अंश
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लम्बे-लम्बे इन्तजार से मन तड़पाते हो |
गोदी में सिर रखकर प्रियतम गीत सुनाते हो |
देरी से आने की झूठी गाथा गाते हो,
पलकें पोल खोलती फिर भी बात बनाते हो |
शब्दों के तुम बड़े खिलाड़ी भाव जमाते हो
अवसर पाकर अंगुली पकड़ी "पौंचा" पाते हो |
प्यासी धरती पर रिमझिम सावन बरसाते हो
मन-झुरमुट में हौले से प्रिय फूल खिलाते हो |
एक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,
हुए अनमने, इधर उधर कर समय बिताते हो |
रह-रह कर के विरह-अग्नि बरबस भड़काते हो,
रह-रह करके पल-पल तन-मन आग लगाते हो |
फिर आने का वादा करके वापस जाते हो,
वापस जाकर के फिर से तुम हमें भुलाते हो ||
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कुंडलियाँ
चाहूँ तुम्हे पुकारना, पर रहती चुपचाप |
कैसा अंतर्द्वंद्व यह, कैसा यह संताप |
कैसा यह संताप, अश्रु-धारा को धारा | रही रास्ता नाप, पुकारी नहीं दुबारा | प्रीति रही अपनाय, प्रीति-सागर अवगाहूँ |
परिजन जाते छूट, तुम्हे अंतर से चाहूँ |
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लम्बे-लम्बे इन्तजार से, तन-मन तड़पाते हो |
ReplyDeleteगोदी में सिर रखकर प्रियतम गीत सुनाते हो |
देर से आने की झूठी, सब - गाथा गाते हो,
पलकें पोल खोलती फिर भी बात बनाते हो |
शब्दों के तुम बड़े खिलाड़ी भाव जमाते हो
अवसर पाकर अंगुली पकड़ी "पहुंचा" पाते हो |
(पौंचा )
प्यासी धरती पर रिमझिम सावन बरसाते हो
मन-झुरमुट में हौले से प्रिय फूल खिलाते हो |
एक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,
अनमयस्क से इधर उधर कर समय बिताते हो |
(अन्यमनस्क )
चाहूँ तुम्हे पुकारना, पर रहती चुपचाप |
ReplyDeleteकैसा अंतर्द्वंद यह, कैसा यह संताप |
(अंतर्द्वंद्व )
सुन्दर मनोहर भाव और अर्थ छटा .
लम्बे-लम्बे इन्तजार से, तन-मन तड़पाते हो |
ReplyDeleteगोदी में सिर रखकर प्रियतम गीत सुनाते हो |
देर से आने की झूठी, सब - गाथा गाते हो,
पलकें पोल खोलती फिर भी बात बनाते हो |
शब्दों के तुम बड़े खिलाड़ी भाव जमाते हो
अवसर पाकर अंगुली पकड़ी "पहुंचा" पाते हो |
(पौंचा )
प्यासी धरती पर रिमझिम सावन बरसाते हो
मन-झुरमुट में हौले से प्रिय फूल खिलाते हो |
एक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,
अनमयस्क से इधर उधर कर समय बिताते हो |
(अन्यमनस्क )
बढ़िया प्रस्तुति है गीतात्मक ,कथा प्रवाह लिए कलकल .
टिपण्णी स्पेम से निकालो भाई साहब .आदाब .
ReplyDeleteलम्बे-लम्बे इन्तजार से, तन-मन तड़पाते हो |
ReplyDeleteगोदी में सिर रखकर प्रियतम गीत सुनाते हो |
देर से आने की झूठी, सब - गाथा गाते हो,
पलकें पोल खोलती फिर भी बात बनाते हो |
शब्दों के तुम बड़े खिलाड़ी भाव जमाते हो
अवसर पाकर अंगुली पकड़ी "पहुंचा" पाते हो |
(पौंचा )
प्यासी धरती पर रिमझिम सावन बरसाते हो
मन-झुरमुट में हौले से प्रिय फूल खिलाते हो |
एक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,
अनमयस्क से इधर उधर कर समय बिताते हो |
(अन्यमनस्क )
बढ़िया प्रस्तुति है गीतात्मक ,कथा प्रवाह लिए कलकल .
टिपण्णी स्पेम से निकालो भाई साहब .आदाब .
ReplyDeleteकुंडलियाँ
ReplyDeleteचाहूँ तुम्हे पुकारना, पर रहती चुपचाप |
कैसा अंतर्द्वंद यह, कैसा यह संताप |
कैसा अंतर -द्वंद्व यह ,कैसा यह संताप ...सुन्दर रचना है .द्वंद्व दुरुस्त करें .
ReplyDeleteएक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,
अनमयस्क से इधर उधर कर समय बिताते हो |
अन्य -मनस्क भी ठीक नहीं किया आपने .