30 November, 2012

अवसर पाकर अंगुली पकड़ी "पौंचा" पाते हो-

 

श्री राम की सहोदरी : भगवती शांता सर्ग-4/सर्ग-5
के अंश 



लम्बे-लम्बे इन्तजार से मन तड़पाते  हो |
गोदी में सिर रखकर प्रियतम गीत सुनाते हो |

  देरी से आने की झूठी गाथा गाते हो,
पलकें पोल खोलती फिर भी बात बनाते हो |

शब्दों  के तुम  बड़े  खिलाड़ी  भाव  जमाते हो
अवसर पाकर अंगुली पकड़ी "पौंचा" पाते हो |

प्यासी धरती पर रिमझिम सावन बरसाते हो  
मन-झुरमुट में हौले से  प्रिय फूल खिलाते हो |

एक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,
हुए अनमने, इधर उधर कर समय बिताते हो |

रह-रह कर के  विरह-अग्नि बरबस भड़काते हो, 
रह-रह करके पल-पल तन-मन आग लगाते हो |

फिर  आने  का  वादा  करके  वापस  जाते हो,
वापस जाकर के फिर से तुम हमें भुलाते हो  || 


 कुंडलियाँ 
 चाहूँ तुम्हे पुकारना, पर रहती चुपचाप |
 कैसा अंतर्द्वंद्व यह, कैसा यह संताप |

कैसा यह संताप, अश्रु-धारा को धारा |
रही रास्ता नाप, पुकारी नहीं दुबारा |

प्रीति रही अपनाय, प्रीति-सागर अवगाहूँ  | 
परिजन जाते छूट, तुम्हे अंतर से चाहूँ  | 

8 comments:

  1. लम्बे-लम्बे इन्तजार से, तन-मन तड़पाते हो |
    गोदी में सिर रखकर प्रियतम गीत सुनाते हो |

    देर से आने की झूठी, सब - गाथा गाते हो,
    पलकें पोल खोलती फिर भी बात बनाते हो |

    शब्दों के तुम बड़े खिलाड़ी भाव जमाते हो
    अवसर पाकर अंगुली पकड़ी "पहुंचा" पाते हो |
    (पौंचा )
    प्यासी धरती पर रिमझिम सावन बरसाते हो
    मन-झुरमुट में हौले से प्रिय फूल खिलाते हो |

    एक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,
    अनमयस्क से इधर उधर कर समय बिताते हो |

    (अन्यमनस्क )

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  2. चाहूँ तुम्हे पुकारना, पर रहती चुपचाप |
    कैसा अंतर्द्वंद यह, कैसा यह संताप |

    (अंतर्द्वंद्व )
    सुन्दर मनोहर भाव और अर्थ छटा .

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  3. लम्बे-लम्बे इन्तजार से, तन-मन तड़पाते हो |
    गोदी में सिर रखकर प्रियतम गीत सुनाते हो |

    देर से आने की झूठी, सब - गाथा गाते हो,
    पलकें पोल खोलती फिर भी बात बनाते हो |

    शब्दों के तुम बड़े खिलाड़ी भाव जमाते हो
    अवसर पाकर अंगुली पकड़ी "पहुंचा" पाते हो |
    (पौंचा )
    प्यासी धरती पर रिमझिम सावन बरसाते हो
    मन-झुरमुट में हौले से प्रिय फूल खिलाते हो |

    एक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,
    अनमयस्क से इधर उधर कर समय बिताते हो |

    (अन्यमनस्क )

    बढ़िया प्रस्तुति है गीतात्मक ,कथा प्रवाह लिए कलकल .

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  4. टिपण्णी स्पेम से निकालो भाई साहब .आदाब .

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  5. लम्बे-लम्बे इन्तजार से, तन-मन तड़पाते हो |
    गोदी में सिर रखकर प्रियतम गीत सुनाते हो |

    देर से आने की झूठी, सब - गाथा गाते हो,
    पलकें पोल खोलती फिर भी बात बनाते हो |

    शब्दों के तुम बड़े खिलाड़ी भाव जमाते हो
    अवसर पाकर अंगुली पकड़ी "पहुंचा" पाते हो |
    (पौंचा )
    प्यासी धरती पर रिमझिम सावन बरसाते हो
    मन-झुरमुट में हौले से प्रिय फूल खिलाते हो |

    एक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,
    अनमयस्क से इधर उधर कर समय बिताते हो |

    (अन्यमनस्क )

    बढ़िया प्रस्तुति है गीतात्मक ,कथा प्रवाह लिए कलकल .

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  6. टिपण्णी स्पेम से निकालो भाई साहब .आदाब .

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  7. कुंडलियाँ
    चाहूँ तुम्हे पुकारना, पर रहती चुपचाप |
    कैसा अंतर्द्वंद यह, कैसा यह संताप |

    कैसा अंतर -द्वंद्व यह ,कैसा यह संताप ...सुन्दर रचना है .द्वंद्व दुरुस्त करें .

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  8. एक-घरी रुक के खुद को जो व्यस्त बताते हो,
    अनमयस्क से इधर उधर कर समय बिताते हो |
    अन्य -मनस्क भी ठीक नहीं किया आपने .

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