07 January, 2013

छोड़ अकेली चल पड़े, सिया-हरण ले देख




दोहे  
 इम्तिहान ले सिखा के, गुरुवर बेहद शख्त ।
इम्तिहान पहले लिया, बाद सिखाये वक्त ।1।

ठोकर खाकर गिर गया, झाड़-झूड़ कर ठाढ़ ।
  गर सीखा फिर भी नहीं, पाए कष्ट प्रगाढ़ ।।

 लिए अमोलक निधि चले, रक्षा तंत्र नकार ।
उधर लुटेरे ताड़ते, कैसे हो उद्धार ??

   अनदेखी दायित्व की, खींच महज इक रेख ।
 लक्ष्मण की मजबूरियां, सिया-हरण ले देख ।।


सज्जन-चुप दुर्जन-चतुर, छले छाल हे राम  |
भक्त श्रमिक आसक्त अघ, रखे काम से काम |

अघ=पापी
 काम=महादेव, विष्णु , कामदेव, कार्य, सहवास की इच्छा आदि

10 comments:

  1. निर्देश का उल्लंघन ठीक नहीं, पर बच्चे समझते नहीं...ज्ञानवर्धक पोस्ट !!

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  2. इम्तिहान पहले लिया, बाद सिखाये वक्त

    यही सच है, बहुत खूब !

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  3. रावण ब्राहमण था, विद्वान था और शूरवीर था। पौराणिक मान्यता के अनुसार उसने इंद्र को पराजित किया और उसे बांध लाया। तब उसने इंद्राणी का अपहरण नहीं किया तो वह सीता का अपहरण भला क्यों करेगा ?
    यह बात रावण के चरित्र से मेल नहीं खाती।
    वैसे भी सीता जी रावण से ज़्यादा शक्तिशाली थीं। जिस धनुष को पराक्रमी रावण हिला भी न सका था उसे सीता जी पांच-छः वर्ष की आयु में भी बायें हाथ से उठाकर दायें हाथ से उसके नीचे से पोछा आदि मारकर सफ़ाई कर दिया करती थीं।
    इसके अलावा वह सती भी थीं और सती को बुरी नीयत से छूने वाला भस्म हो जाता है।
    माता सीता के अपहरण की बात कवियों की कपोल कल्पना सिद्ध होती है।

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  4. ..बठोकर खाकर गिर गया, झाड़-झूड़ कर ठाढ़।
    गर सीखा फिर भी नहीं, पाए कष्ट प्रगाढ़।
    ....बहुत बढिया शिक्षाप्रद दोहे!

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  5. अनदेखी दायित्व की, खींच महज इक रेख ।
    लक्ष्मण की मजबूरियां, सिया-हरण ले देख ।।

    सटीक है हमारे वक्त पे तंज ताज़ा ताज़ा .

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  6. आपकी यह बेहतरीन रचना शुकरवार यानी 11/01/2013 को

    http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर लिंक की जाएगी…
    इस संदर्भ में आप के सुझाव का स्वागत है।

    सूचनार्थ,

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