पंजा की पडवानियाँ, गायन वादन नृत्य ।
संचारित संवाद हों, अभिनय करते भृत्य । अभिनय करते भृत्य, कटे जब मुर्ग-मुसल्लम । चले यहाँ बारात, कटारी चाक़ू बल्लम । सत्ता दुल्हन दूर, वरे दूल्हा जब गंजा । चिंतन दीपक पूर, भिड़ाओ छक्का पंजा ।। |
है वजीर यह पिलपिला, पिला-पिला के पैग ।
पैदल-कुल बकवा रहे , दे आतंकी टैग -
फिर से नई विसात बिछाये ।
देश-भक्त कहलाता जाए ।।
कडुवाहट भरते रहे, नकारात्मक बोल ।
नकारात्मक प्रेरणा, रहे रास्ता खोल ।
फिर भर्ती में तेजी आये ।
देश-भक्त कहलाता जाए ।।
धर्मभीरु भी जब कभी, हो जाता है त्रस्त ।
नए रास्ते खोजता, सहिष्णुता कर अस्त ।
गलत-सही कुछ कदम उठाये ।
देश-भक्त कहलाता जाए ।।
देश गलतियाँ भुगतता, हर पीढ़ी की चार ।
रोज गर्त में जा रहा, जिम्मा ले परिवार ।
नए नए नारे बहकाए ।
देश-भक्त कहलाता जाए ।।
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बहुत बढ़िया भाई साहब .
ReplyDeleteप्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।
प्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
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बेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामना
ReplyDeleteachchi rachana.
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