अश्रु करे आसान पथ, जो सत्ता तक जाय ।
नहीं बहाना है बुरा, उचित बहाना पाय ।
चाहे मन में चोर ।
हुआ पक्ष कमजोर ।।
है विवाद परिवार का, करती नारी कोप ।
गैंग-रेप का केस हो, सिद्ध झूठ आरोप ।
व्यर्थ मचायी शोर ।
हुआ पक्ष कमजोर ।।
व्याकुल कृषक मजूर हैं, खले कर्ज का बोझ ।
मँहगाई की मार फिर, मरना लागे सोझ ।
थोड़ा और अगोर ।
हुआ पक्ष कमजोर ।।
विद्रोही नक्सल बड़े, करें व्यवस्था ध्वस्त ।
त्रस्त आम पब्लिक यहाँ, दिल्ली सत्ता मस्त ।
सारे आदमखोर ।
हुआ पक्ष कमजोर ।।
निभा रहे हम धर्म हैं, किन्तु पडोसी गर्म ।
रोज रहा खिल्ली उड़ा, गला काट बेशर्म ।
जैसे काटे ढोर ।
हुआ पक्ष कमजोर ।।
बाशिंदे नाराज हैं, शिंदे की बकवास ।
वोट-बैंक भी बूझता, बीते वर्ष पचास ।
कब सुधरे गति मोर ।
हुआ पक्ष कमजोर ।।
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तो-बा-शिंदे बोल तू , तालिबान अफगान-
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सुन्दर भाव अभिवयक्ति
ReplyDeleteवाह ... आपकी कलम को नमन ... आपकी विचार धारा को नमन ...
ReplyDeleteसटीक सामयिक अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteबाशिंदे नाराज हैं, शिंदे की बकवास ।
ReplyDeleteवोट-बैंक भी बूझता, बीते वर्ष पचास ।
कब सुधरे गति मोर ।
हुआ पक्ष कमजोर ।।
"मजबूरी में ठीक कहूंगा ,
कैसे हैं हालात न पूछो .
देने वाला अपना ही था ,
किसने दी सौगात न पूछो ."
-प्रसन्न वदन चतुर्वेदी
शिंदे -,दिग्विजयों की ,अब औकात न पूछो ,
बद्जातों की कौम न पूछों
पुरखों का इनके इतिहास न पूछों .
अतिथि कविता :डॉ .वागीश मेहता
ReplyDeleteतुम्हें धिक्कार है
यूं तो वागीश जी ने यह कविता स्वतन्त्र सन्दर्भों में लिखी है ,पर आज के हालात में ,अगर दिग्विजय सिंह
जी को अपना चेहरा नजर आता है तो उन्हें इस आईने को ज़रूर देखना और पढ़ना चाहिए
वतन और कौम पर भारी ,महाकलंक ,
निरंतर झूठ बोले जा रहे ,निष्कंप ,
सुर्खी बने अखबार में ,चर्चा तो हो ,
गज़ब कैसा है तुम्हारा ये नया किरदार ,
धन्य थे पुरखे तुम्हारे ,पर तुम्हें धिक्कार .
(2)
देखे हैं इस देश ने ,कई विषम गद्दार ,
जेलों में हैं बंद कई ,कुछ अभी फरार ,
इतिहास में भी दर्ज़ है ,कुछ नाम और भी ,
पर तुम्हारे सामने ,बौने सभी लाचार ,
धन्य थे पुरखे तुम्हारे ,पर तुम्हें धिक्कार .
(3)
यह तुम्हारी मानसिकता का घटित परिणाम ,
बटा जो देश भारत ,तो बना पाकिस्तान ,
उसी के वास्ते शहतीर घर का हो गिराते तुम ,
अब भी बाकी क्या कसर ,तुम हो विकट मक्कार ,
धन्य थे पुरखे तुम्हारे ,पर तुम्हें धिक्कार .
(4)
चंद वोटों पर निगाहें ,कुछ तो बुरा नहीं ,
फिर भी तलुवे चाटना ,ज़िल्लत से कम नहीं ,
पर आदतन तुम देश को ,बदनाम करते हो ,
तुम्हारे विष वमन पर हो रही ये कौम शर्मशार ,
धन्य थे पुरखे तुम्हारे ,पर तुम्हें धिक्कार .
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरू भाई )
.आभार
ReplyDeleteआपकी महत्वपूर्ण टिप्पणियों का .
शुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी के लिए .
ReplyDeleteपहले तौलो फिर बोलो
ReplyDeleteशब्दों की आग कई मर्तबा फैलती ही चली जाती है .शब्दों की लपट बे काबू
हो जाती है .
शिंदे साहब ने हिन्दू धर्म (शब्द)पर जो लेवल दहशतगर्दी का लगाया है -
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के संरक्षण में भारत में
आतंकी कैम्प चलाये जाने का आरोप मढ़ा है .उन्हें शायद न मालूम हो
इसमें दो बड़ी खामियां हैं .हिंदुत्व जीवन शैली ,वृहद् भारत धर्मी समाज को
इस आरोप ने कलंकित किया है . यह एक धर्म की ही तौहीन नहीं एक
सहिष्णु ,सर्वसमावेशी ऐसी परम्परा का निरादर है जहां देव कुल को
लेकर कोई झगडा नहीं है .पूर्ण प्रजा तंत्र है .एक देववादी कट्टरता को यहाँ
कोई जगह नहीं दी गई है .
शब्द जनित ऐसी ही आग तब लगती है जब कोई स्वघोषित लादेन
इस्लामी
मसीहा बनकर जघन्य अपराध करता है करवाता .9/11 इसका ज़िंदा सबूत
है .इसी के बाद से एक शब्द हवा में तैरता अफवाह की तरह ऊपर और
ऊपर बिना पंख के पाखी सा अफवाह बन उड़ता गया' इस्लामिक टेररिज्म '
,और' इस्लामो -
फोबिया' में तब्दील हो गया .पूरी मुस्लिम कौम बदनाम हुई .जबकि कौमे
और मजहब आतंक वादी नहीं होते ,कुछ स्व:घोषित खलीफाओं फतवा
खोरों द्वारा बरगलाए गए लोग ज़रूर आतंकवादी बन जाते हैं .
शाहरुख खान को इसीलिए बारहा अमरीका में धर लिया जाता है .
शिंदे साहब को जो देश के गृह मंत्री हैं शब्दों के चयन में सावधानी बरतनी
चाहिए थी .
दूसरी खामी यह है उनके द्वारा लगाए गए आरोपण में जान होनी चाहिए
.सामने लायें वह सत्य को यदि ऐसा कुछ है तो .जब तक न्यायालय उनके
खिलाफ आरोप सिद्ध नहीं करता ,उन्हें अपराधी नहीं घोषित करता आपका
शिंदे साहब ऐसा कहना दुस्साहस ही कहा जाएगा .आपके पास तो जांच
रपट भी है आर एस एस और बी जे पी के तत्वावधान चलने वाले आतंकी
कैम्पों की .द्रुत न्यायालय गठित करने का दौर है यह .आपको ऐसा भी
करने से
रोकने वाला कोई नहीं है .क्यों नहीं करवा देते आप दूध का दूध और पानी
का पानी .
शब्द बूमरांग करते हैं शिंदे साहब .
यू केन पुट योर एक्ट टुगेदर .
ram ram bhai
ReplyDeleteमुखपृष्ठ
मंगलवार, 22 जनवरी 2013
पहले तौलो फिर बोलो
http://veerubhai1947.blogspot.in/
आभार सद्य टिपण्णी का .
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