21 January, 2013

सत्ता दुल्हन दूर, वरे दूल्हा जब गंजा-




  पंजा की पडवानियाँ, गायन वादन नृत्य ।
संचारित संवाद हों, अभिनय करते भृत्य ।

अभिनय करते भृत्य, कटे जब मुर्ग-मुसल्लम ।
चले यहाँ  बारात, कटारी चाक़ू बल्लम ।

सत्ता दुल्हन दूर, वरे दूल्हा जब गंजा ।
चिंतन दीपक पूर, भिड़ाओ छक्का पंजा ।।

है वजीर यह पिलपिला, पिला-पिला के पैग ।
 पैदल-कुल बकवा रहे , दे आतंकी टैग -
फिर से नई विसात बिछाये 
देश-भक्त कहलाता जाए  ।।

कडुवाहट भरते रहे, नकारात्मक बोल ।
नकारात्मक प्रेरणा, रहे रास्ता खोल ।
 फिर भर्ती में तेजी आये  ।
देश-भक्त कहलाता जाए  ।।
धर्मभीरु भी जब कभी, हो जाता है त्रस्त ।
नए रास्ते खोजता, सहिष्णुता कर अस्त । 
गलत-सही कुछ  कदम उठाये ।
देश-भक्त कहलाता जाए  ।।
 
देश गलतियाँ भुगतता, हर पीढ़ी की चार ।
रोज गर्त में जा रहा, जिम्मा ले परिवार ।
नए नए नारे बहकाए ।
देश-भक्त कहलाता जाए  ।।

5 comments:

  1. बहुत बढ़िया भाई साहब .

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  2. प्रभावशाली ,
    जारी रहें।

    शुभकामना !!!

    आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
    आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।

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  3. प्रभावशाली ,
    जारी रहें।

    शुभकामना !!!

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  4. बेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामना

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