15 January, 2013

धावति रविकर अश्व, मेध चाहे हो जाए


पुख्ता पावन वृत्तियाँ, न्यौछावर सर्वस्व |
कीर्ति पताका फहरती, धावति रविकर अश्व |

धावति रविकर अश्व , मेध चाहे हो जाए |
एक नहीं सैकड़ों, बार धड़ शीश कटाए |

मम माता तव शान, चढ़ाएंगे सिर-मुक्ता |
लेना आप पिरोय, गिनतियाँ रखना पुख्ता ||

 

अपने नगर-मुहल्ले को सुरक्षित बनाएं- -

हल्ले-गुल्ले से खफा, रविकर सत्ताधीश ।
खबर रेप की मीडिया, रोज उछाले बीस ।
रोज उछाले बीस, सधे व्यापारिक हित हैं ।
 लगा मुखौटे छद्म, दिखाते बड़े व्यथित हैं । 
हरदम होते रेप, पड़े दावा नहिं पल्ले ।
देखे वर्ष अनेक, सुरक्षित दिखे मुहल्ले ।।


1 comment:

  1. बहुत ही सार्थक शब्द,धन्यबाद।

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