हाय हाय रे मीडिया, देश-देश का भक्त ।
टी आर पी की दौड़ सह, विज्ञापन आसक्त ।
विज्ञापन आसक्त, आज तक पूजा बेदी ।
बलि बेदी पर शीश, मस्त है घर का भेदी ।
लगा दिया आरोप, विपक्षी भड़काते हैं ।
सत्ता के वक्तव्य , सख्त देखो आते हैं ।।
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चर्चा करने के लिए, कमर्शियल ले ब्रेक ।
अपनी मर्जी थोपते, एंकर कुछ कुछ क्रेक ।
एंकर कुछ कुछ क्रेक, साथ में सेलिब्रिटी भी ।
मन-गढ़ंत आरोप, चिढ़ाती काली जीभी ।
गर चर्चा का दौर, रखो विज्ञापन बाहर ।
करिए इस पर गौर, मीडिया रविकर सादर ।।
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व्यापारी है मीडिया, सदा देखता स्वार्थ ।
विज्ञापन मछली बड़ी, आँख देखता पार्थ ।
आँख देखता पार्थ, अर्थ में दीवाना है ।
रहे बेंचता दर्द, मर्ज से अनजाना है ।
नकारात्मक खबर, बने हर समय सुर्खियाँ ।
सकारात्मक त्याज्य, लगे खुब जोर मिर्चियाँ ।।
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प्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।
रविकर जी,
ReplyDeleteआशु कविताओं का तीव्र प्रवाह यहीं देखने को मिलता है .... सारी खबरों को आप समेट लेते हैं और सभी साथियों से मिलना भी नहीं भूलते। आप सभी में बसने वाले परमात्मा के समकक्ष होते जा रहे हैं। आपको हर कहीं तो पाता हूँ। :)
'व्यक्तव्य' सही शब्द नहीं आप इसके स्थान पर 'वक्तव्य' शब्द बिना संकोच के रखें ... मात्रिक विधान वही रहता है।
शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का .स्पेम में गईं हैं पूर्व की टिप्पणियाँ इसी पोस्ट पे .
ReplyDeleteसच बयाँ करती रचना
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