मनमौजी मम मनचली, मनमथ मथ मन जाय ।
मनसायन में मात्र मैं, मन-मोहिनी लुकाय ।
मन-मोहिनी लुकाय, आय नहिं सम्मुख मेरे ।
तन्हाई यह खाय, याद के मेघ घनेरे ।
आजा हो बरसात, कलेजा बने कलौंजी ।
खाओ लेकर स्वाद, देह रविकर मनमौजी ।।
मनमथ = कामदेव
लुकाय = छुप जाय
मनसायन = प्रेमियों के बैठने का स्थान
कलौंजी = परवल / करेला को चीरकर मसाला भरकर
तैयार की गई तरकारी ।
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चखना है श्रृंगार रस, हो जाता वीभत्स ।
कहते गुरुवर यह नहीं, तेरे बस का वत्स ।
तेरे बस का वत्स, बैठ जा मार कुंडली ।
गली गली में भटक, ढूँढ़ता नाहक अगली ।
आजा रविकर पास, ध्यान नुक्कड़ का रखना ।
है अंग्रेजी-शॉप, साथ ले आना चखना ।।
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व्यापारी है मीडिया, सदा देखता स्वार्थ ।
विज्ञापन मछली बड़ी, आँख देखता पार्थ ।
आँख देखता पार्थ, अर्थ में दीवाना है ।
रहे बेंचता दर्द, मर्ज से अनजाना है ।
नकारात्मक खबर, बने हर समय सुर्खियाँ ।
सकारात्मक त्याज्य, लगे खुब जोर मिर्चियाँ ।।
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बढिया,बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति कुंडली दार प्रासंगिक सन्दर्भों की .
ReplyDeleteखुबसूरत अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteप्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
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उत्कृष्ट प्रस्तुति .आभार आपकी सद्य टिप्पणियों का .हमें चर्चा मंच पे बिठाने का .
ReplyDeleteकाम बढ़ाए शीत यह,ध्यानी होता रंज
ReplyDeleteऊर्ध्वाधर ऊर्जा जगे,मनसायन में रंग!
शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .मार्मिक प्रासंगिक .
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