हल्ले-गुल्ले से खफा, रविकर सत्ताधीश ।
खबर रेप की मीडिया, रोज उछाले बीस ।
रोज उछाले बीस, सधे व्यापारिक हित हैं ।
लगा मुखौटे छद्म, दिखाते बड़े व्यथित हैं ।
हरदम होते रेप, पड़े दावा नहिं पल्ले ।
देखे वर्ष अनेक, सुरक्षित दिखे मुहल्ले ।।
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जली दिमागी बत्तियां, किन्तु हुईं कुछ फ्यूज ।
बरबस बस के हादसे, बनते प्राइम न्यूज ।
बनते प्राइम न्यूज, व्यूज एक्सपर्ट आ रहे ।
शब्द यूज कन्फ्यूज, गालियाँ साथ खा रहे ।
सड़ी-गली दे सीख, मिटाते मुंह की खुजली ।
स्वयंसिद्ध *सक सृज्य , गिरे उनपर बन बिजली ।।
*शक्ति
मर्यादित वो राम जी, व्यवहारिक घनश्याम ।
देख आधुनिक स्वयंभू , ताम-झाम से काम ।
ताम-झाम से काम-तमाम कराते राधे ।
राधे राधे बोल, सकल हित अपना साधे ।
बेवकूफ हैं भक्त, अजब रहती दिनचर्या ।
कर खुद गीता पाठ, रोज ही जाकर मर-या |
रोज उछाले बीस, सधे व्यापारिक हित हैं ।
ReplyDeleteलगा मुखौटे छद्म, दिखाते बड़े व्यथित हैं ।
सही कहा आपने सच्चाई से कही गयी बात
प्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!!
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सामयिक तंज सर जी .आभार .वक्त आ गया है अब इस सरकार नाम की शै के तर्पण का .
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत पंक्तियाँ . सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह .बहुत सुन्दर