14 January, 2013

अपने नगर-मुहल्ले को सुरक्षित बनाएं- -




हल्ले-गुल्ले से खफा, रविकर सत्ताधीश ।
खबर रेप की मीडिया, रोज उछाले बीस ।

रोज उछाले बीस, सधे व्यापारिक हित हैं ।
 लगा मुखौटे छद्म, दिखाते बड़े व्यथित हैं । 

हरदम होते रेप, पड़े दावा नहिं पल्ले ।
देखे वर्ष अनेक, सुरक्षित दिखे मुहल्ले ।।




  जली दिमागी बत्तियां, किन्तु हुईं कुछ फ्यूज ।
बरबस बस के हादसे, बनते प्राइम न्यूज ।

बनते प्राइम न्यूज, व्यूज एक्सपर्ट आ रहे ।
शब्द यूज कन्फ्यूज, गालियाँ साथ खा रहे ।

सड़ी-गली दे सीख, मिटाते मुंह की खुजली ।
स्वयंसिद्ध *सक सृज्य , गिरे उनपर बन बिजली ।।
 *शक्ति

 मर्यादित वो राम जी, व्यवहारिक घनश्याम ।
देख आधुनिक स्वयंभू , ताम-झाम से काम ।

ताम-झाम से काम-तमाम कराते राधे ।
राधे राधे बोल, सकल हित अपना साधे ।

बेवकूफ हैं भक्त, अजब रहती दिनचर्या ।
कर खुद गीता  पाठ, रोज ही जाकर मर-या

4 comments:

  1. रोज उछाले बीस, सधे व्यापारिक हित हैं ।
    लगा मुखौटे छद्म, दिखाते बड़े व्यथित हैं ।

    सही कहा आपने सच्चाई से कही गयी बात

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  2. प्रभावशाली ,
    जारी रहें।

    शुभकामना !!!

    आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
    आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।

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  3. सामयिक तंज सर जी .आभार .वक्त आ गया है अब इस सरकार नाम की शै के तर्पण का .

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  4. बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ . सुंदर प्रस्तुति
    वाह .बहुत सुन्दर

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