17 January, 2013

तो कौन सा है दर्द भारी ?


सीमा में घुसपैठ हो, शीत युद्ध दे छेड़ ।
  विस्फोटों की बाढ़ है, पावे नहीं खदेड़  ।।
मजबूरी है क्या सरकारी ?
 तो,  कौन सा है दर्द भारी ?

मारे फौजी, काट सिर, जाता है धड़ फ़ेंक ।
हरदम कड़ा जवाब दे, सत्ता अपनी नेक ।।
कांग्रेस के हम आभारी ।
तो,  कौन सा है दर्द भारी ?
नक्सल मारे पुलिस को, रखे पेट में बम्ब ।
मिले हमेशा ही उन्हें, हिमायती आलम्ब ।।
निभा रहे हैं नातेदारी ।
तो,  कौन सा है दर्द भारी ?
किश्तों में हैं काटते, जनता की वे जेब ।
 मँहगाई गाई गई, झटक पचास फरेब ।।
सह लो फिर से यह मक्कारी ।
 तो,  कौन सा है दर्द भारी ?
दिल से दिल्ली दामिनी, दाग रही है धोय ।
हुवे प्रभावी मोर्चे, अँसुवन बदन भिगोय ।।
 मरे नहीं, पर अत्याचारी ।
तो,  कौन सा है दर्द भारी ?

7 comments:

  1. ये तो सारे ही दर्द भारी हैं ... अच्छी प्रस्तुति

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  2. दर्द भरी ये दास्तान तभी ख़त्म होगी जब हम नेतृत्व करने वाले सुयोग्य जन प्रतिनिधियों चुनाव करेगे और निक्कामो की फ़ौज से पीछा चुडायेगे ,जिनका न तो कोई राजधर्म है न कोई उद्देश्यपूर्ण कर्म है

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  3. किसी को है फेसबुक का दर्द भारी तो किसी को चुभता ब्लाग का दर्द है भारी।
    बात की बात कि बेबात की फिक्र ---विजय राजबली माथुर

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  4. बहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  5. फिर भी

    कोउ नृप होय हमै का हानी कहती जनता सारी

    और इसीलिए आपकी रचना प्यारी

    "कुछ कहना है" तो कौन सा है दर्द भारी .....

    बहुत ही उम्दा .....बधाई

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  6. बस दर्द ही दर्द हैं यहां..जि‍क्र कि‍स-कि‍स का करें..बहुत बढ़ि‍या

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