विद्वानों की टोलियाँ, *बतर बोलियाँ बोल ।
करें कलेजा तर-बतर, पोल-पट्टियाँ खोल ।
पोल-पट्टियाँ खोल, झोल इसमें है लेकिन ।
नौसिखुवे हों गोल, हुवे हैं जिनको दो दिन ।
अनुशंसा-तारीफ़, तनिक करना भी जानो ।
अनजाने तकलीफ, नहीं दो हे! विद्वानों ।।
*बुरी
बहुत खूब सर जी .चक्कू छुरियाँ चलने लगीं हैं कुछ के कलेजे पे .सांप भी लौटेंगे अभी .छोड़ना नहीं है इन सेकुलरों को .
ReplyDeleteदेश के 64वें गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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आपकी पोस्ट के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-01-2013) के चर्चा मंच-1137 (सोन चिरैया अब कहाँ है…?) पर भी होगी!
सूचनार्थ... सादर!
बहुत गहरे मारा है।
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ReplyDeleteमित्र, गणतन्त्रदिवस की हार्दिक शुभकामना के साथ-
ReplyDeleteआप की रचनाओं की शहद पगी कटु औषधि के समाण मीठी कुंडलियों की चोट सराहनीय होप्ती है |
उम्दा प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई...६४वें गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाएं...
ReplyDeleteकरारा वार ,उत्कृष्ट प्रस्तुति।
ReplyDeleteसही कहा तारीफ भी होनी चाहिये । सुंदर प्रस्तुति ।
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