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माया के वक्तव्य से, रही रियाया रोय । 
भाई का आनन्द भी, जाता तुरत विलोय । 
जाता तुरत विलोय, अरब-पति उसे बनाया ।  
लेकिन ये क्या बात, नहीं उसपर अब साया । 
मैडम का इनकार, मुसीबत उसकी भारी । 
छापे को तैयार, कई धाकड़ अधिकारी ।।
   
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शक्ल चवन्नी छाप है, अक्ल खुली टकसाल । 
बा-शिंदे गंदे बड़े, घाल-मेल के पाल । 
घाल मेल के पाल, ताल दिग्विजयी ठोंके । 
नन्दी मालामाल, चाल चल चल के रो के । 
बड़े खरे ये लोग, नशेडी सूंघे पन्नी । 
दिखता सत्ता-योग, बनायी शक्ल चवन्नी ।।  
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बहुत खूब
ReplyDeleteSundar
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