दो दो पैसे में बटा, किम्मी किम्मी दर्द ।
तुम क्या जानो कीमतें, मोहन बाबू मर्द ।
मोहन बाबू मर्द, कभी काटी ना चुटकी ।
देह आज है जर्द, आत्मा अटकी भटकी ।
समय सुरक्षित रेल, बढ़ें सुविधाएं कैसे ?
रहे संपदा लूट, लूट अब दो दो पैसे ।।
|
पैमाना अब सब्र का, कांग्रेस लबरेज । ठोकर मारेंगे भड़क, शान्ति-वार्ता मेज । शान्ति-वार्ता मेज, दामिनी को दफनाया । नक्सल के इक्कीस, पाक की हरकत जाया । आज पड़ी जो मार, मरे अब्दुल दीवाना । बेगाने का व्याह, छलक जाता पैमाना ।। |
बाह्य-व्यवस्था फेल, नहीं अन्दर भी बाकी
पाकी दो सैनिक हते, इत नक्सल इक्कीस ।
रविकर इन पर रीस है, उन पर दारुण रीस ।
उन पर दारुण रीस, देह क्षत-विक्षत कर दी ।
सो के सत्ताधीश, गुजारे घर में सर्दी ।
बाह्य-व्यवस्था फेल, नहीं अन्दर भी बाकी ।
सीमोलंघन खेल, बाज नहिं आते पाकी ।।
|
हमें तो इस बात पर भी शक है की यह मोहन बाबू मर्द है !!
ReplyDelete