15 February, 2013

जिनकी चाकरी नहीं पक्की -

ठीका पर बहाल करते हैं।
गाँधी को निहाल करते हैं ।।
मनरेगा-हाथ में ठेंगा 
 करते ठीक-ठाक आमदनी -
 मिहनत बेमिसाल करते हैं ।।

देशी का सुरूर चढ़ जाता -
ठीका पर बवाल करते हैं ।।
 
जिनकी चाकरी नहीं पक्की -
 वो भी पाँच साल करते हैं  ।

तू लाखों कमा कमीशन जब
कारीगर कमाल करते हैं ।।

फोड़ें ठीकरा विफलता का
उनपर सवाल करते हैं ।

कारिन्दे बटोरते दौलत-
 दरबारी मलाल करते है ।

जनता जूझती रहे जब-तब
वे जलसे-बवाल करते हैं ।।

8 comments:

  1. हा-हा-हा ,,,मैं तो रविकर जी दो लेने के बाद चुपचाप घर चला जाता हूँ :) बढ़िया, सुन्दर भाव !

    ReplyDelete
  2. बिलकुल सही कहा है आपने !!

    ReplyDelete
  3. बहुत बढ़िया ...

    ReplyDelete
  4. श्रीमान जी यही विडंबना है एस देश में मेहनत कोई और करता है मलाई कोई और खाता है

    ReplyDelete
  5. छोटी बहर जब भी लेकर आते हैं ,

    रविकर कमाल करते हैं .

    सेहत नामा का मुकुट बने हैं आप कविवर प्राणाम आपकी मेधा को .

    ReplyDelete
  6. छोटी बहर जब भी लेकर आते हैं ,

    रविकर कमाल करते हैं .

    सेहत नामा का मुकुट बने हैं आप कविवर प्राणाम आपकी मेधा को .

    ReplyDelete
  7. बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!बेहतरीन अभिव्यक्ति.सादर नमन ।।

    ReplyDelete
  8. जनता जूझती रहे जब-तब
    वे जलसे-बवाल करते हैं ।।
    प्रिय रविकर जी ..बस वही बातें याद आयीं सतसैया के दोहरे घाव करें गंभीर ...
    सुन्दर रचा
    भ्रमर 5
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल

    ReplyDelete