जा रे रोले दुष्ट-मन, जार जार दो बार ।
जरा-मरा कोई नहीं, दिखे जीव *इकतार ।
दिखे जीव *इकतार, पले हैं भले "गो-धरा" ।
जब उन्नत व्यापार, द्वंद-हथियार भोथरा ।
अव्वल है यह प्रांत, सही नीतियाँ सँवारे ।
दो दिन बच्चन संग, चलो गुजरात गुजारे ।।
*समान
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सुन्दर !!
ReplyDeleteसादर प्रणाम ,यथार्थ से परिचय करती सुंदर रचना के लिए साधुवाद
ReplyDeletekya baat hai sir do din bachchan sang aao gujraat gujaren.
ReplyDeleteगुज़ारिश : ''......यह तो मौसम का जादू है मितवा......''
वाह सामयिक सुंदर कुंडली ।
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