बढ़िया था ना बोलता, अपनी चुप्पी तोड़ ।
ओ-वेशी ही कर रहा, बेमतलब की होड़ ।
बेमतलब की होड़, नहीं अब यूँ बहकाना ।
माना वह है मूर्ख, तुम्हें भी कहे जमाना ।
रविकर गुजरा माह, आज बोला "तो-गरिया" ।
रहा देखता राह, किन्तु चुप्पी थी बढ़िया ।।
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पुरानी -कुण्डली
ओ-वेशी मत बकबका, मुहाजिरों को देख |
सर्वाइव कैसे करें, शिया मियां कुल शेख | शिया मियां कुल शेख, पाक की हालत बदतर | इत मुस्लिम खुशहाल, किसी से हैं क्या कमतर विश्लेषण अनुसार, हिन्दु है बड़ा हितैषी | बाप चुके थे बाट, बाट मत अब ओ बेशी || |
बुद्धि विभाजक सर्वदा,चालें चलती मीन
ReplyDeleteअति हुई तो तोड़ मौन,प्रकट हुए प्रवीण
बढ़िया गरियाया है ओ -वेशी बहरुपिये को .
ReplyDeleteबढ़िया..मजेदार प्रस्तुति।।।
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