05 February, 2013

पुरस्कार जो पाय, आय हमको वह विधि- ना


 विधिना लिखकर सो गए, अपने अतुल विधान |
सरेआम अदना अकल, डाले नए निशान | 

डाले नए निशान, शान से कविता रचते |
उद्वेलित हो हृदय, तहलके जमके मचते |

स्वान्त: लिखूं सुखाय, जानता रविकर इतना |
पुरस्कार जो पाय, आय हमको वह विधि- ना ||

5 comments:

  1. इतने 'रत्न' !
    इतने 'विभूषण' !!
    इतने 'भूषण' !!!

    इतने 'पद्म' सम्मान !!!!

    फिर भी ...

    ख़तरे में इज़्ज़त,
    क्षत-विक्षत 'मान' ...

    सचमुच
    भारत देश महान !

    -प्रदीप कुमार पालीवाल

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  2. सही कहा रविकर जी पर आपका पुरस्कार तो हम जैसे पाठक हैं ना ।

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  3. बहुत बढिया।

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  4. बहुत बढ़िया....

    सादर
    अनु

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