खरी-खरी खोटी-खरी, खरबर खबर खँगाल ।
फरी-फरी फ़रियाँय फिर, घरी-घरी घंटाल ।
घरी-घरी घंटाल, मीडिया माथा-पच्ची ।
सिद्ध होय गर स्वार्थ, दबा दे ख़बरें सच्ची ।
परमारथ का ढोंग, बे-हया देखे खबरी ।
करें शुद्ध व्यवसाय, आपदा क्यूँकर अखरी ??
|
खबर खभरना बन्द कर, ना कर खरभर मित्र ।
खरी खरी ख़बरें खुलें, मत कर चित्र-विचित्र । मत कर चित्र-विचित्र, समझ ले जिम्मेदारी । खम्भें दरकें तीन, बोझ चौथे पर भारी । सकारात्मक असर, पड़े दुनिया पर वरना । तुझपर सारा दोष, करे जो खबर खभरना ।। खबर खभरना = मिलावटी खबर |
जली दिमागी बत्तियां, किन्तु हुईं कुछ फ्यूज ।
*शक्तिबरबस बस के हादसे, बनते प्राइम न्यूज । बनते प्राइम न्यूज, व्यूज एक्सपर्ट आ रहे । शब्द यूज कन्फ्यूज, गालियाँ साथ खा रहे । सड़ी-गली दे सीख, मिटाते मुंह की खुजली । स्वयंसिद्ध *सक सृज्य , गिरे उनपर बन बिजली ।। |
आदरणीय गुरुदेव श्री प्रणाम, बेहद सुन्दर कुण्डलिया हार्दिक बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteVery nice. Like it.
ReplyDeleteसिद्ध सच्चाई, गजब चौपाई।
ReplyDeleteअति सुन्दर !!
ReplyDeleteबहुत सच्ची कुंडलियां । इतने बडे देश में कुछ भी अच्छा और सकारात्मक ना हो रहा हो यह बात पचती नही । पर मीडिया तो वही बतायेगा जो सनसनीखेज हो या फिर पेड न्यूज़ हो ।
ReplyDelete