16 February, 2013

बेगम पान चबाय के , छक्का चिड़ी बुलाय-


आदरणीय रविकर जी, एक प्रयास मेरा भी........
इक्के पर खामोश है, बादशाह कमजोर,
जेक जमाए चौकियां, बेगम खींचे डोर,
बेगम खींचे डोर, पड़ा पंजा खतरे में,
दहला सारा देश, बंटे सत्ता कतरों में,

दुगनी तिगनी स्पीड, भागते सारे छक्के,
अठ्ठे पठ्ठे ख़ास,चढ़े नहला करके इक्के/
  • Arun Kumar Nigam आदरणीय रविकर जी, एक प्रयास...
    इक्के पे इक्का चढ़ा, दुआ दुआ रहि मांग
    तिग्गी चौका देखती , पंजा खींचे टांग
    पंजा खींचे टांग , बजाता ताली छक्का
    सत्ता बावनपरी , आठ नहले का कक्का

    दहले जोकर क्वीन, किंग ही खाय मुनक्के
    ताश - महल बनवाय, एक हों चारों इक्के ||

रविकर की प्रतिक्रिया कुंडलिया 

बेगम पान चबाय के , छक्का चिड़ी बुलाय |
राजतिलक देती लगा, ईंट बादशा आय |
ईंट बादशा आय, रेत उसमे है ज्यादा |
एक आँख ही पास, जैक सा बनकर प्यादा |
खो देता अस्तित्व, दुष्ट सत्ता का सरगम |
बजा बजा के मस्त, हुकुम की अपनी बेगम ||



मूल रचना 

 सत्तावन जो कर रहे,  जोड़ा बावन ताश ।
चौका (4) दे जन-पथ महल, *अट्ठा(8) पट्ठा पास । 

सत्तावन=ग्रुप ऑफ़ मिनिस--              अट्ठा= कूट-नैतिक सलाह---
पट्ठा =  जवान-लड़का              सिंह इज किंग 
अट्ठा(8) पट्ठा पास, किंग(K) पंजा(5) से दहला(10)
रानी(Q)नहला(9)जैक(J), देख 
छक्का(6) मन बहला ।   


नहला=ताजपोशी के लिए नहलाना 
  दुक्की(2) तिग्गी(3)ट्रम्प, हिला ना *पाया-पत्ता ।

खड़ा ताश का महल, चढ़े इक्के(A) पे सत्ता (7)।।

*खम्भा 


  1. अति-उत्कृष्ट प्रस्तुति पर यह तुच्छ भेंट-

    दोनों हाथों से रहे, दौलत लोग भकोस |
    होने लगे मरोड़ तो, देते धन को दोष |
    देते धन को दोष, कोष को भरे घुटाले |
    घुटे हुवे हैं लोग, हाथ बिन धोये खा ले |
    मठ-मंदिर में दान, कई एन' जी ओ पोसे |
    है इतिहास महान, रचो दोनों हाथों से ||
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    Replies
    1. कन्नी अक्सर काटते, राजनीति से मित्र |
      गिन्नी जैसी किन्तु यह, चम्-चम् करे विचित्र |
      चम्-चम् करे विचित्र , बड़े दीवाने इसके |
      चाहे जाय चरित्र, मरे चाहे वे पिसके |
      करते रहते खेल, कमीशन काट चवन्नी |
      आ के पापड़ बेल, काट ना यूं ही कन्नी ||
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    2. आदरणीय अरुण भैया-

      जुल्मी जीते साल भर, इल्मी कभी कभार |
      कहते जुल्मी भार है, कभी खायगा मार |
      कभी खायगा मार, मजा लेकिन नित मारे |
      मारे अपने शत्रु, हमेशा ही हुंकारे |
      सत्य प्रेम की जीत, कथानक पूरा फ़िल्मी |
      ढाई घंटे मस्त, कहीं फिर मरता जुल्मी ||

4 comments:

  1. गुरूजी प्रणाम | आज से आपको गुरूजी बुलाऊंगा | आप मेरी कुंडलियों के गुरु हैं | बहुत सुन्दर प्रविष्टियाँ चुनी आपने | बधाई

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  2. अति-उत्कृष्ट प्रस्तुति पर यह तुच्छ भेंट-

    दोनों हाथों से रहे, दौलत लोग भकोस |
    होने लगे मरोड़ तो, देते धन को दोष |
    देते धन को दोष, कोष को भरे घुटाले |
    घुटे हुवे हैं लोग, हाथ बिन धोये खा ले |
    मठ-मंदिर में दान, कई एन' जी ओ पोसे |
    है इतिहास महान, रचो दोनों हाथों से ||

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    1. कन्नी अक्सर काटते, राजनीति से मित्र |
      गिन्नी जैसी किन्तु यह, चम्-चम् करे विचित्र |
      चम्-चम् करे विचित्र , बड़े दीवाने इसके |
      चाहे जाय चरित्र, मरे चाहे वे पिसके |
      करते रहते खेल, कमीशन काट चवन्नी |
      आ के पापड़ बेल, काट ना यूं ही कन्नी ||

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    2. आदरणीय अरुण भैया-

      जुल्मी जीते साल भर, इल्मी कभी कभार |
      कहते जुल्मी भार है, कभी खायगा मार |
      कभी खायगा मार, मजा लेकिन नित मारे |
      मारे अपने शत्रु, हमेशा ही हुंकारे |
      सत्य प्रेम की जीत, कथानक पूरा फ़िल्मी |
      ढाई घंटे मस्त, कहीं फिर मरता जुल्मी ||

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