17 February, 2013

राजनैतिक कुण्डलिया : दर दरवाजा छोड़, लगा ना थोथा थापा

1
थोथा थापा द्वार पर, करता बन्टाधार |
पंजे के इस छाप से, कैसा अब उद्धार |
 
कैसा अब उद्धार, भांजती *थापी सत्ता |
थोक-पीट सामंत, उतारे कपडा-लत्ता |
 
रहे कब्र यह खोद, निभा अब ना बहिनापा |
दर दरवाजा छोड़, लगा ना थोथा थापा ||




2
गाई मँहगाई गई, नई नवेली सोच ।
अलबेली देवी दिखे, पीती रक्त खरोच ।

पीती रक्त खरोच, लगे ईंधन का चस्का ।
करती बंटाधार, मार मंत्री मकु मस्का ।

चढ़े चढ़ावा तेल, पुन: चीनी झल्लाई ।
 अब मांगी है जान, नहीं माने मँहगाई ।।

पश्चिम से होती हलचल ।
ताप गिरे दिन-रात का, ठंडी बहे बयार ।
ओले पत्थर गिर रहे, बारिस देती मार ।।
सागर के मस्तक पर बल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।
शीत-युद्ध सीमांतरी, हो जाता है गर्म ।
चलते गोले गोलियां, शत्रु छेदता मर्म ।।
 काटे सर करके वह छल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।
उड़न खटोला चाहिए, सत्ता मद में चूर ।
बटे दलाली खौफ बिन, खरीदार मगरूर ।
चॉपर अब तो तोपें कल ।
पश्चिम से होती हलचल ।।
भोगवाद अब जीतता, रीते रीति-रिवाज ।
विज्ञापन से जी रहे, लुटे हर जगह लाज ।
पीते घी ओढ़े कम्बल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।
 परम्पराएँ तोड़ता, फिर भी दकियानूस ।
तन पूरब का ढो रहा, पश्चिम मन मनहूस । 
बदले मानव अब पल पल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।
 

जब धरा पे है बची बंजर जमीं, बीज सरसों का उगा ले हाथ पर

 

7 comments:

  1. शानदार अभिव्यक्ति .

    भोगवाद अब जीतता, रीते रीति-रिवाज ।
    विज्ञापन से जी रहे, लुटे हर जगह लाज ।

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  2. वाह!
    आपकी यह प्रविष्टि आज दिनांक 18-02-2013 को चर्चामंच-1159 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  4. आपकी कलम कमाल की है सर!:-)
    ~सादर!!!

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  5. सादर अभिवादन के साथ,"मत्स्य गंधा फिर कोइ होगी
    किसी ऋषि का शिकार ,दूर तक फैला हुआ गहरा कुहासा
    देखिये (आदम गोंडवी),बहूत खूब

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