21 February, 2013

गढ़े शुभाशुभ जीव, महारथि क्लीब बनाए-

चक्र-चलैया चाकचक, चैली-चाक-कुम्हार |
मातृ मातृका मातृवत, नभ जल गगन बयार |

नभ जल गगन बयार, सार संसार बसाये  । 
गढ़े शुभाशुभ जीव, महारथि क्लीब बनाए । 

सिर काटे शिशु पाल, सु-भद्रे सुत मरवैया । 
व्यर्थ बजावत गाल, नियामक चक्र-चलैया ॥ 
चाकचक=दृढ़   चैली=लकड़ी  क्लीब = नपुंसक 



"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-23

 मिट्टी सोखे  नियत जल, रौंधे रोज कुम्हार |
चढ़ा चाक पर नित्य ही, दे सुडौल आकार |
दे सुडौल आकार, धूप में उसे सुखा दे |
पावक गगन समीर, बड़ा मजबूत बना दे  |
सह सकती कृति ठेस, किन्तु गुम सिट्टी-पिट्टी  ||
टुकड़े टुकड़े अंश, पञ्च तत्व मिट्टी मिट्टी ||

 नई व्यवस्था दृढ़ दिखी, होय कलेजा चाक |
करे चाक-चौबंद जब, कैसे लेता ताक |
कैसे लेता ताक, ताक में लेकिन हरदम |
लख सालों की धाक, देह का घटता दमखम |
सब कुम्हार का दोष, शिथिल से अस्थि-आस्था |
मिटटी के प्रतिकूल, चाक की नई व्यवस्था ||
भगदड़ दुनिया में दिखे, समय चाक चल तेज |
कुम्भकार की हड़बड़ी, कृति अनगढ़ दे भेज |
कृति अनगढ़ दे भेज, बराबर नहीं अंगुलियाँ |
दिल दिमाग में भेद, मसलते नाजुक कलियाँ |
ठीक करा ले चाक, हटा मिटटी की गड़बड़ |
जल नभ पावक वायु, मचा ना पावें भगदड़ ||

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर वहा वहा क्या बात है अद्भुत, सार्थक प्रस्तुरी
    मेरी नई रचना
    खुशबू
    प्रेमविरह

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  2. रविकर जी नमस्कार आप आये मेरे ब्लॉग पर आप निरंतर आते ही हैं मेरे ब्लॉग पर जिसकी मुझे आशा होती

    और आपकी लेखनी के बारे में कुछ कहुगा तो शयाद छोटा मुहं बड़ी बात होगी

    पर आपने मेरे ब्लाग पर आज जो कमेंट किया उस को समझने में असमर्थ हूँ

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  3. क्या बात है सर जी रचनात्मकता का आपकी ज़वाब नहीं जग जग जियो कुंडली धारे ...

    मिट्टी सोखे नियत जल, रौंधे रोज कुम्हार |
    चढ़ा चाक पर नित्य ही, दे सुडौल आकार |
    दे सुडौल आकार, धूप में उसे सुखा दे |
    पावक गगन समीर, बड़ा मजबूत बना दे |
    सह सकती कृति ठेस, किन्तु गुम सिट्टी-पिट्टी ||
    टुकड़े टुकड़े अंश, पञ्च तत्व मिट्टी मिट्टी ||

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  4. अनुप्रास की छटा देखते ही बनती है।

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