गोरु गोरस गोरसी, गौरैया गोराटि ।
गो गोबर गोसा गणित, गोशाला परिपाटि ।
गोशाला परिपाटि, पञ्च पनघट पगडंडी ।
पीपल पलथी पाग, कहाँ सप्ताहिक मंडी ।
गाँव गाँव में जंग, जमीं जर जल्पक जोरू ।
भिन्न भिन्न दल हाँक, चराते रहते गोरु ॥
गो गोबर गोसा गणित, गोशाला परिपाटि ।
गोशाला परिपाटि, पञ्च पनघट पगडंडी ।
पीपल पलथी पाग, कहाँ सप्ताहिक मंडी ।
गाँव गाँव में जंग, जमीं जर जल्पक जोरू ।
भिन्न भिन्न दल हाँक, चराते रहते गोरु ॥
गोसा=गोइंठा / उपला
गोरसी = अंगीठी
गोरु = जानवर
गोराटि = मैना
पाग=पगड़ी
जलपक =बकवादी
मित्रवर, शाब्दी व्यंजना गज़ब की है !
ReplyDeleteगुरूजी.... साधू साधू |
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
आपने बिलकुल सही कहा बहुत खूब
ReplyDeleteमेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
ReplyDeleteग की आनुप्रासिक छटा बिखेर दी आपने .
गज़ब!
ReplyDeleteअनुप्रास की प्रासिंगगता के साथ बेहतरीन शब्द संयोजन
ReplyDeleteवाह जोरदार ।
ReplyDeleteअद्वितीय, चमत्कारिक...
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