लगा ले मीडिया अटकल, बढ़े टी आर पी चैनल ।
जरा आतंक फैलाओ, दिखाओ तो तनिक छल बल ।। फटे बम लोग मर जाएँ, भुनायें चीख सारे दल । धमाके की खबर तो थी, कहे दिल्ली बताया कल ॥ हुआ है खून सादा जब, नहीं कोई दिखे खटमल । घुटाले रोज हो जाते, मिले कोई नहीं जिंदल ।। कहीं दोषी बचें ना छल, अगर सत्ता करे बल-बल । नहीं आश्वस्त हो जाना, नहीं होनी कहीं हलचल ॥ जवानी धर्म से भटके, हुआ वह शर्तिया "भटकल" । मरे जब लोग मेले में, उड़ाओ रेल मत नक्सल|| |
पिलपिलाया गूदा है ।
छी बड़ा बेहूदा है । ।
मर रही पब्लिक तो क्या -
आँख दोनों मूँदा है ॥
जा कफ़न ले आ पुरकस
इक फिदाइन कूदा है ।
कल गुरू को मूँदा था
आज चेलों ने रूँदा है ॥
पाक में करता अनशन-
मुल्क भेजा फालूदा है ॥
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लोग मरते तो हैं ।
जख्म भरते तो हैं ॥
बम फटे हैं बेशक -
एलर्ट करते तो हों ।
पब्लिक परेशां लगती
कष्ट हरते तो हैं ॥
रोज गीदड़ भभकी
दुश्मन डरते तो हैं ।
दोषी पायेंगे सजा
हम अकड़ते तो हैं ।
बघनखे शिवा पहने -
गले मिलते तो हैं ॥
कंधे मजबूत हैं रविकर-
लाश धरते तो हैं ।
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कल गुरू को मूँदा था
ReplyDeleteआज चेलों ने रूँदा है ॥
बहुत खूब क्या बात है आनंद आगया
मेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
बहुत सुन्दर | आभार
ReplyDeleteबढ़िया रविकर जी !
ReplyDeleteबहुत सटीक टिपण्णी सूचना प्रदाता मंत्रालय पर .
ReplyDeleteलोग मरते तो हैं ।
जख्म भरते तो हैं ॥
बम फटे हैं बेशक -
एलर्ट करते तो हों ।
पब्लिक परेशां लगती
कष्ट हरते तो हैं ॥
रोज गीदड़ भभकी
दुश्मन डरते तो हैं ।
दोषी पायेंगे सजा
हम अकड़ते तो हैं ।
बघनखे शिवा पहने -
गले मिलते तो हैं ॥
कंधे मजबूत हैं रविकर-
लाश धरते तो हैं ।
भाई रविकर जी ,रुंद -रुंद कर ,गूंथ -गूंथ कर,इअ सब को
ReplyDeleteऔकात बता दो ,हटा -हटा चश्मे इनके चेहरों से ,इन
सबके अब होश जग दो ..
रविकर जी,
ReplyDeleteबिटिया की शादी के कामों में अति व्यस्तता, फिर कई दिनों की बीमारी से कल ही तो निबटा हूँ |आज कुछ स्वस्ठ अनुभव कर के ब्लोप्ग पर उपस्थित होने का प्रयास है |
अथ! क्याखूब धमाकेदार भाषा में 'वीभत्स' में ताजगी भर दी है !
प्यार का तेरे तलबगार हूँ मैं |
क्यों ण हो यह तेरा यार हूँ में ||
तेरे फैज़ का असर कुछ ऐसा था-
कि महक से आब्सार हूँ मैं !!
दूसरी रचना में तो व्यंग्य और भी चुटीला और गम्भीर है !!
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