गुडिया कहे पुकार केहत्यारे रे भ्रूण के, हे प्रियजन आभार ।
तेरे कारण मुमुक्षता, मिले बिना व्यभिचार ।
मिले बिना व्यभिचार, कैंडिल बोतल तोड़े ।
छोड़े नहिं सुकुमारि, गैंग तन-बदन मरोड़े ।
रोड़े भरे अपार, मौत क्यूँ हर दिन मारे ।
कर सच्चा व्यापार, भ्रूण में कर हत्या-रे ॥
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कमतर कमकस कमिश्नर, नर-नीरज पर दाग ।
कफ़नखसोटी में लगा, लगा रहा फिर आग ।
लगा रहा फिर आग, कमीना बना कमेला ।
संभले नहीं कमान, लाज से करता खेला ।
गृहमंत्रालय ढीठ, राज्य की हालत बदतर ।
करे आंकड़े पेश, बके दिल्ली को कमतर ॥
कमकस=कामचोर
कमेला = कत्लगाह (पशुओं का )
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नष्ट पुरुष से हो चुका, नारिजगत का मोह-
छली जा रहीं नारियां, गली-गली में द्रोह ।
नष्ट पुरुष से हो चुका, नारिजगत का मोह |
नारिजगत का मोह, गोह सम नरपशु गोहन ।
बनके गौं के यार, गोरि-गति गोही दोहन ।
नरदारा नरभूमि, नराधम हरकत छिछली ।
फेंके फ़न्दे-फाँस , फँसाये फुदकी मछली । ।
गोहन = साथी-संगी
गौं के यार=अपना अर्थ साधने वाला
गोही = गुप्त
नरदारा=नपुंसक
नरभूमि=भारतवर्ष
फुदकी=छोटी चिड़िया
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बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या बात
सामयिक सटीक और मार्मिक ।
ReplyDeleteबहुत ही सटीक और प्रभावशाली काव्य रचना,आपका आभार आदरणीय.
ReplyDeleteमार्मिक रचना !!
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteरविकर जी कहां हैं आप । कृपया लिखिये और पढिये भी ।
ReplyDeletePahli baar aapke blogpe aayi hun.....abhi to kewal 3 rachnayen padh payi hun....kharab sehatke karan....dheere aur padhungi....kahnekee zaroorat nahi ke aap bahut achha likhte hain!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक रचना आभार
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