24 April, 2013

कर सच्चा व्यापार, भ्रूण में कर हत्या-रे -



गुडिया कहे पुकार के  

हत्यारे रे भ्रूण के, हे प्रियजन आभार । 
तेरे कारण मुमुक्षता, मिले बिना व्यभिचार । 

मिले बिना व्यभिचार, कैंडिल बोतल तोड़े । 
छोड़े नहिं सुकुमारि, गैंग तन-बदन मरोड़े । 

रोड़े भरे अपार, मौत क्यूँ हर दिन मारे । 
कर सच्चा व्यापार, भ्रूण में कर हत्या-रे ॥  


कमतर कमकस कमिश्नर, नर-नीरज पर दाग । 
कफ़नखसोटी में लगा, लगा रहा फिर आग । 

लगा रहा फिर आग, कमीना बना कमेला । 
संभले नहीं कमान, लाज से करता खेला । 

गृहमंत्रालय ढीठ, राज्य की हालत बदतर । 
करे आंकड़े पेश, बके दिल्ली को कमतर ॥ 
कमकस=कामचोर 
कमेला = कत्लगाह (पशुओं का )



नष्ट पुरुष से हो चुका, नारिजगत का मोह-

छली जा रहीं नारियां, गली-गली में द्रोह ।
नष्ट पुरुष से हो चुका, नारिजगत का मोह |

नारिजगत का मोह, गोह सम नरपशु गोहन ।

बनके गौं के यार, गोरि-गति गोही दोहन ।

नरदारा नरभूमि, नराधम हरकत छिछली । 

फेंके फ़न्दे-फाँस , फँसाये फुदकी मछली । ।  
गोहन = साथी-संगी 

गौं के यार=अपना अर्थ साधने वाला

गोही = गुप्त  

नरदारा=नपुंसक 

नरभूमि=भारतवर्ष 
फुदकी=छोटी चिड़िया

9 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना
    क्या बात

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  2. सामयिक सटीक और मार्मिक ।

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  3. बहुत ही सटीक और प्रभावशाली काव्य रचना,आपका आभार आदरणीय.

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  4. उत्कृष्ट प्रस्तुति ..

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  5. बहुत सुंदर रचना

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  6. रविकर जी कहां हैं आप । कृपया लिखिये और पढिये भी ।

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  7. Pahli baar aapke blogpe aayi hun.....abhi to kewal 3 rachnayen padh payi hun....kharab sehatke karan....dheere aur padhungi....kahnekee zaroorat nahi ke aap bahut achha likhte hain!

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  8. बहुत सुन्‍दर और सार्थक रचना आभार

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