बहुरे घूरे के दिना, गिना साल दर साल ।
अब घूरे जाएँ पुरुष, बनकर महिला माल ।
बनकर महिला माल, सँवारे घंटा सारी ।
किन्तु घटा उत्साह, करे घंटा तैयारी ।
तज सोलह श्रृंगार, वस्त्र साधारण पहिरे ।
पुरुषों के मानिंद, *घूरती बेटी-बहु रे ॥
*घूमती
*घूमती
वाह भाई वाह वो देखो तौलती काया ...नजरों से
ReplyDeleteइशारों से आदमी का वजन बतलाती बाला महान
बढ़िया!!!!!
ReplyDeleteसादर
अनु
badiya-**
ReplyDeleteबहुरे...बहु रे ...सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeletevery...nice...
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