सवैया -(१ )
गोलक-गोल गुलाब गभीर गनीमत गोल नहीं लपके ।
गोलक-गोल गुलाब गभीर गनीमत गोल नहीं लपके ।
चोंच चकोर चरावर चार सुडौल कपोल नहीं मटके ।
नीति नई जब आय गई तब छोरन सांस लगे अटके ।
होलिक मौसम आय गवा चुपचाप बिता इनसे बचके |
(२)
झट झक्कड़ झोंक झड़ी झकझोर झई *झलकंठ समान लगे ।
कुछ देख सका नहीं सोच सका पल में वह आय हठात भगे ।
नयना मदहोश हुवे तुरतै, तन कम्पित हो मन मोर ठगे ।
दिख जाय पुन: इक बार तनी कवि विह्वल है दिन रात जगे |
(३)
(३)
छंद भरे छल-छंद लगे, छुप *छित्वर छीबर छेद करे |
आँखिन में मद मस्त भरे, पट में तन में नहिं भेद करे |
रंग लिए दुइ हाथन में मुख में मल के फिर खेद करे |
खेल पटेल करे बहु भाँति लड़े फिर सुन्दर-मेल करे |
*ढोंगी
(४)
(४)
मनसायन आयन मन्मथ भायन मानस वेग बढ़ा कसके |
रजनी सजनी मधुचन्द मिली, मकु खेल-कुलेल पड़ा लसके |
अब स्वप्न भरोस करे मनुवा पिय आय रहो हिय में बस के ।
खट राग लगे कुल रात जगे मन मौज करे रजके हँसके |
बहुत ही बढिया।
ReplyDeleteआनुप्रासिक छटा बिखेर दी आपने काव्य सौष्ठव की खुश्बू और भला क्या है ?
ReplyDeleteछंद भरे छल-छंद लगे, छुप *छित्वर छीबर छेद करे |
ReplyDeleteआँखिन में मद मस्त भरे, पट में तन में नहिं भेद करे |
रंग लिए दुइ हाथन में मुख में मल के फिर खेद करे |
खेल पटेल करे बहु भाँति लड़े फिर सुन्दर-मेल करे |
*ढोंगी
आदरणीय ....बहुत सुन्दर ...भावपूर्ण ...होली की शुभ कामनाएं ..गुल गुलाल गुलाब पर ...
भ्रमर 5
गज़ब ... गज़ब सर गज़ब ...
ReplyDeleteकई कई बार पढ़ने का मन करता है ... अपने तो अलंकार ही बिछा दिए ...