31 March, 2013

नीति नई जब आय गई तब छोरन सांस लगे अटके-


 
  सवैया -(१ )
गोलक-गोल गुलाब गभीर गनीमत गोल नहीं लपके  ।
चोंच चकोर चरावर चार सुडौल कपोल नहीं मटके  ।
नीति नई जब आय गई तब छोरन सांस लगे अटके  ।
होलिक मौसम आय गवा चुपचाप बिता इनसे बचके |
(२)
झट झक्कड़ झोंक झड़ी झकझोर झई *झलकंठ समान लगे ।
कुछ देख सका नहीं सोच सका पल में वह आय हठात भगे ।
नयना मदहोश हुवे तुरतै, तन कम्पित हो मन मोर ठगे ।
दिख जाय पुन: इक बार तनी कवि विह्वल है दिन रात जगे |
(३)
छंद भरे छल-छंद लगे, छुप *छित्वर छीबर छेद करे |
आँखिन में मद मस्त भरे, पट में तन में नहिं भेद करे |
रंग लिए दुइ हाथन में मुख में मल के फिर खेद करे |
खेल पटेल करे बहु भाँति  लड़े फिर सुन्दर-मेल  करे | 
*ढोंगी
(४)
 मनसायन आयन मन्मथ भायन मानस वेग बढ़ा कसके |
रजनी सजनी मधुचन्द मिली, मकु खेल-कुलेल पड़ा लसके |
अब स्वप्न भरोस करे मनुवा पिय आय रहो हिय में बस के ।
खट राग लगे कुल रात जगे मन मौज करे रजके हँसके |

4 comments:

  1. बहुत ही बढिया।

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  2. आनुप्रासिक छटा बिखेर दी आपने काव्य सौष्ठव की खुश्बू और भला क्या है ?

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  3. छंद भरे छल-छंद लगे, छुप *छित्वर छीबर छेद करे |
    आँखिन में मद मस्त भरे, पट में तन में नहिं भेद करे |
    रंग लिए दुइ हाथन में मुख में मल के फिर खेद करे |
    खेल पटेल करे बहु भाँति लड़े फिर सुन्दर-मेल करे |
    *ढोंगी
    आदरणीय ....बहुत सुन्दर ...भावपूर्ण ...होली की शुभ कामनाएं ..गुल गुलाल गुलाब पर ...
    भ्रमर 5

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  4. गज़ब ... गज़ब सर गज़ब ...
    कई कई बार पढ़ने का मन करता है ... अपने तो अलंकार ही बिछा दिए ...

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